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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 127 अडवीइ देसिअत्तं तहेव निजामया समुद्दम्मि / छक्कायरक्खणट्ठा महगोवाँ तेण वुच्चंति // 18 // 904 // उ०—गुणवानना गुणोनी पूजा करवाथी विशिष्ट फळ मळे छे एम मानवामां आवे तो ते उपकार पण सिद्धोथी ज थाय छे ए स्पष्ट छे; केमके सिद्धोना अभावे मोक्षमा अविनाशीपणानी बुद्धि पण न थाय, तेथी ए उपकार सिद्धोथी थाय छे एम मानवू जोईए / 5 अथवा अभीष्ट एवा मोक्षनगरनो आ ज्ञानादि सन्मार्ग छे एवो निश्चय सिद्धोना कारणे ज थाय छे / मोक्षनगरना अविनाशीपणाना कारणे सम्यग्दर्शन आदि सन्मार्ग छे एवो प्रत्यय मुमुक्षुने थाय छ / सिद्धोना अभावमां एवो विश्वास क्यांथी थाय ? आथी सिद्धो उपर्युक्त प्रत्यय उत्पन्न करता होवाथी मार्गोपकारी छे अने तेथी ज पूज्य छ। वळी, सिद्धोना अविनाशीभावथी तथा तेमना अनुपम सुखरूप फळने जाणवाथी सम्यग्दर्शन 10 आदि मोक्षमार्गमां जे प्रीति थाय छे ते सिद्धोथी ज थाय छे, बीजाथी थती नथी / आथी मोक्षमार्गमां रुचि उत्पन्न करवारूप उपकार सिद्धोनो ज छे / प्र०-मोक्षमार्गमां रुचि अने ए मार्ग- मोक्षसुखरूप फळ, तेनुं ज्ञान तो अरिहंतना वचनथी थाय छे तो पछी सिद्धोना अविनाशी भावरूप हेतुनुं निरूपण करवानुं प्रयोजन शुं ? उ०--ए प्रश्न साचो छे, छतां मार्गना सिद्धत्वप्राप्तिरूप फळना सद्भावथी मोक्षमार्गमां 15 * विशेष प्रीति थाय छे / तेथी ज सिद्धोनो अविनाशी हेतु अहीं जणाव्यो छे / प्र०--निश्चय नयना मते आत्मा ज मोक्षमार्ग छे अने रुचि ए सम्यक्त्व छे, ते पण आत्मा ज छे, बीजं कई नथी / तो पछी अविनाशीरूप बाह्य हेतु अहीं कहेवाथी शुं ? उ०—ए वात साची छे, पण व्यवहारनयना मते जेम अरिहंतो मार्गोपकारी छे तेम क्षीणसंसारी . सिंद्धो पण अविनाशीभावना कारणे मार्गोपकारी कह्या छ / ___(हवे आचार्य, उपाध्याय अने साधुना नमस्कारनी योग्यतानो हेतु जणावे छे-) आचार्य महाराज आचारनो उपदेश आपवाना कारणे परमोपकारी होवाथी पूज्य छ / सूत्रपाठ आपनार उपाध्याय महाराज विनय गुणने ग्रहण करावनार होवाथी पूज्य छे अने आचारवान् विनयवान् साधु महाराज मोक्षसाधनमां सहाय आपवाना कारणे पूज्य छे / वळी, अरिहंत आदि पांचे, ज्ञान आदि गुणोनी पूजाना स्वर्ग, अपवर्ग आदि फळना निमित्त बने छे तेथी तेओ पूज्य छे / 17, (903) 25 20 अरिहंत भगवंतने नमस्कार। श-अरिहंतो संसाररूप अटवीमां भूला पडेला जीवोने मार्ग बतावता होवाथी तेओ 'मार्गदेशक' कहेवाय छे / तेओ संसाररूप समुद्रमां डूबता अगर खोटवाई गयेला नावने पार पहोंचाडवामां कर्णधारपणुं करता होवाना कारणे 'निर्यामक' कहेवाय छे, अने ते भगवंतो छकाय जीवोना रक्षण माटे प्रयत्न करता होवाना कारणे 'महागोप' कहेवाय छे / 18, (904) 30
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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