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________________ 126 णमोक्कारणिज्जुत्ती। [प्राकृत मग्गो' अविप्पणासो आयारे विणयों सहायत्तं / पंचविहनमुक्कारं करेमि एएहिं हेऊहिं // 17 // 903 // प्र०—जे नमस्कार नामने लायक-पूज्य अथवा योग्य वस्तु छे ते कोण छे ? उ०—गुणना समूहभूत अरिहंत वगेरे पांच प्रकारनी वस्तु छे / अथवा भेदोपचारथी कहीए 5 तो ज्यां ज्ञान आदि गुणो वसे छे ते असाधारण गुणोना स्थानरूप पांच प्रकारनी वस्तु छे। ते वस्तु अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु रूप जाणवी / तेओ गुणमय होवाथी मूर्तिमान् गुणो जेवा छे। तेथी गुणार्थी भव्य जीवोने तेओ पूजवायोग्य छे, अथवा सम्यग्दर्शन वगेरे त्रणनी पेठे अरिहंत वगेरे मोक्षार्थी जीवोने मोक्षना हेतु छे तेथी तेमने ते पूजवायोग्य छ। ___ तात्पर्य ए छे के, गुण-गुणीमां कथंचित् भेदाभेदात्मकता होवाथी अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपा10 ध्याय अने साधु-ए पांचे परमेष्ठी नमस्कार करवायोग्य वस्तु छे। व्यक्ति रत्नत्रयरूप गुणोने ए खातर नमस्कार करे छे के ते गुणोनी प्राप्ति तेने अभीष्ट छ / संसाररूप अटवीने पार करवानुं एक मात्र साधन रत्नत्रय छे, आथी गुण-गुणीमां भेदाभेदात्मकता होवाना कारणे रत्नत्रय गुणने अने तेना धारण करनारा पंच परमेष्ठीओने नमस्कार करवामां आवे छे / आ ज नमस्कारमंत्रनी वस्तु छ। अरिहंत आदि मोक्षमार्गना हेतु केवी रीते छे ते जणावे छे15 श०–मोक्षमार्ग, अविनाशीपणु, आचार, विनय अने सहायत्व ए हेतुओ वडे हुं पांच प्रकारे नमस्कार करुं छु. (17, 903) वि०-मोक्षमार्गनो उपदेश करवाथी अरिहंतो मोक्षना हेतुभूत छे। . प्र०–सम्यग्दर्शन आदि मार्ग ज मोक्षनो हेतु छे पण ते मार्गना हेतुभूत अरिहंत आदि मोक्षना हेतु कयी रीते गणाय ? 20 उ०—मोक्षमार्ग तेमने आधीन होवाथी तेनो उपदेश करवाना कारणे तेओ तेना हेतु छे, अथवा कारणमां कार्यनो उपचार करवायी तेओ मोक्षना हेतु छे एम कही शकाय / प्र०-अरिहंतो वगेरे मोक्षमार्गनो उपदेश करवाना कारणे तेमना उपकारीपणाथी पूय छे, तो गृहस्थो पण तेना साधनभूत आहार, वस्त्र आदि आपवाथी मोक्षमार्गना उपकारी छे एथी परंपराए सर्व कांई पूज्य न गणाय ? 25 उ०--जे वधारे नजीकनुं अने एकांतिक कारण होय ते हेतुरूप गणाय / ज्ञान, दर्शन, चारित्र ए त्रण मोक्षमार्ग छे / तेने आपनारा अरिहंतो छ / वळी, पोते ज मोक्षमार्गना हेतुभूत छे, तेथी तेओ पूज्य छ / आहार आदि तो वधु दूरवर्ती मोक्षना हेतु गणाय / ज्ञान आदि त्रणनी पेठे नियमथी ते मोक्षना ऐकांतिक हेतु नथी / आथी बाह्य साधन आपनारा गृहस्थो मोक्षना हेतु नथी। वळी, ते गृहस्थो स्वयं पण मार्गभूत नथी, माटे पूज्य नथी। (हवे नमस्कार करवाने योग्य सिद्ध भगवंतनो अविनाशीरूप हेतु कहे छे-) सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप मार्गवडे सिद्धो अविच्छिन्न संतानभावे मोक्ष पामेला छे / ए रीते कृतार्थ होवाथी तेओ पूज्य छ / वळी अरिहंत आदिनी जेम ज्ञानादि गुणमय होवाथी पूज्य छ। प्र०—सम्यग्ज्ञान आदि गुणोनी पूजा मात्रथी स्वर्ग, अपवर्ग वगेरे विशिष्ट फळ थाय छे तेथी ते गुणवाळानु पूज्यपणुं मानी शकाय पण तेओ अरिहंतनी पेठे मार्गोपकारी छे ते केवी रीते ? 30
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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