________________ 122 [प्राकृत णमोक्कारणिज्जुत्ती। संतपयपरूवर्णया दवपमाणं च खित्तै फुस) य। कालो अ अंतरं भाग भार्वं अप्पाबहुं चेव // 9 // 895 // (5. स्थिति-काळमर्यादा-'नमस्कार केटलो काळ सुधी होय छे ?') वि०-नमस्कारनी स्थिति उपयोगनी अपेक्षाए जघन्य अने उत्कृष्टथी अंतर्मुहूर्तनी छे, अने 5 क्षयोपशमरूप लब्धिनी अपेक्षाए जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तनी छे, ज्यारे उत्कृष्ट स्थिति छासठ सागरोपमथी किंचित् अधिक होय छे। (सम्यक्त्वनी पण आ ज काळमर्यादा छे / ) ___ एक जीवने आश्रयीने आ स्थिति जणावी छे। विविध जीवोनी अपेक्षाए पण जघन्य अने उत्कृष्टथी ए ज स्थिति जाणवी। लब्धिथी तो समग्र काळ समजवो। (6. विधान-प्रकार-'नमस्कार केटला प्रकारे छे ?') 10 नमस्कार केटला प्रकारे छे ए प्ररूपणामां अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु आ पांच पदोनी पूर्वमा 'नमः' पद जोवाय छे, तेथी अरिहंत वगेरे पांच प्रकारना अर्थ साथे संबंधित होवाथी अरिहंत आदिथी पांच प्रकारे नमस्कार थाय छे, तेथी नमस्कार पांच प्रकारे छ। ___पूर्वे (पदद्वारमा) नैपातिक पदनो पदार्थ मात्र नमस्कार कह्यो छे अने अहीं नमस्कार केटला प्रकारे छे ते द्वारमा अरिहंत आदि पांच प्रकारना पदोना पदार्थ साथे संबंधित होवाथी नमस्कार पांच 15 प्रकारनो छे एम कर्दा छ। 8, (894) नव प्रकारनी प्ररूपणा। श०-१ सत्पद प्ररूपणा, 2 द्रव्यप्रमाण, 3 क्षेत्र, 4 स्पर्शना, 5 काळ, 6 अंतर, 7 भाग, 8 भाव अने 9 अल्पबहुत्व—आ नव द्वारोथी नमस्कारनी नव प्रकारे प्ररूपणा कस्वी। (नमस्काररूप) सत्पदने पामेला अने पामता जीवोनी अपेक्षाए मार्गणाओ-१ गति, 2 इंद्रिय, 20 3 काय, 4 योग, 5 वेद, 6 कषाय, 7 लेश्या, 8 सम्यक्त्व, 9 ज्ञान, 10 दर्शन, 11 संयम, 12 उपयोग, 13 आहारक, 14 भाषक, 15 परित्त, 16 पर्याप्त, 17 सूक्ष्म, 18 संज्ञी, 19 भव्य अने 20 चरमद्वारमा विचारणा करवी। 1. (नमस्कार) पूर्वप्रतिपन्न जीवो (जघन्यथी) सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमा भागना प्रदेशराशीप्रमाण होय छे। (उत्कृष्टथी तेथी विशेष अधिक होय / ) 2 (नमस्कारवाळा जीवो) क्षेत्र25 लोकना चौद भागमांथी सात भाग प्रमाण क्षेत्रमा होय छे। 3 (नमस्कारवाळा जीवोनी) स्पर्शना पण ए ज प्रमाणे समजवी। 4 एक जीवनी अपेक्षाए नमस्कारनो काळ 894 मी गाथामां कह्या प्रमाणे छ / नानाविध जीवोनी अपेक्षाए सर्वकाळ छ। 5 एक जीवनी अपेक्षाए नमस्कारनुं अंतर जघन्यथी अंतर्मुहूर्त काळनुं छे अने उत्कृष्टथी अर्धपुद्गलपरावर्तमां कंईक न्यून अनन्त काळ सुधीनुं छे / नाना जीवोनी अपेक्षाए