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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। ___121 121 उवओग पडुच्चंतोमुहुत्त लद्धीइ होइ उ जहन्नो उक्कोसटिइ छावट्टि सागरापरिहाइ पंचविहो // 8 // 894 // (4. अधिकरण-आधार-'नमस्कार शेमां होय छे ?') नमस्कारमंत्रनो आधार शो छे ? आधार चार प्रकारनो छ। 1 व्यापक, 2 औपश्लेषिक, 3 सामीप्यक अने 4 वैषयिक / 5 1. 'तलमां तेल छे' ते व्यापक आधार कहेवाय / 2. 'सादडी ऊपर बेठेलो छे' ते औपश्लेषिक आधार कहेवाय / 3. 'गंगामां गोवाळियाओनो वाडो छे' (अर्थात् गंगाना किनारा उपर गोवाळियाओनो वाडो छे) ते सामीप्यक आधार कहेवाय / 4. 'रूपमां आंख छे' ते वैषयिक आधार कहेवाय / आ चार प्रकारोमा प्रथम प्रकार 'व्यापक आधार' ए अभ्यंतर छे, ज्यारे बीजा त्रण प्रकारो बाह्य छ / नैगम अने व्यवहार नय ए बाह्य प्रकारोने अवलंबे छ / 10 नमस्कार ए जीवनो गुण होवाथी जीव छे / ते (नमस्कार) नमस्कार करनार जीव ज्यारे हाथी वगेरे पर स्थित होय त्यारे जीवमां, अने सादडी वगेरे पर बेठेलो होय त्यारे अजीवमां, अने बंने पर (जीव अने अजीव पर) स्थित होय त्यारे जीवमां अने अजीवमां छे एम समजवू / आ प्रकारे एकवचन अने बहुवचनना प्रयोगथी एना आठ प्रकारो अगाऊ जणाव्या मुजब थाय छे ___ आ नमस्कार 1 जीवमां, 2 अजीवमां, 3 जीवोमां, 4 अजीवोमां, 5 जीव-अजीवमां, 6 जीव-15 अजीवोमां, 7 जीवो-अजीवमां अने 8 जीवो-अजीवोमां कथंचित् भेदाभेदात्मकता होवाना कारणे उपर्युक्त आठ भागोमांथी कोई पण समये कोई पण एक भंगनो आधार बने छ / . प्र०--नैगम अने व्यवहार नयनी अपेक्षाए पूज्यनो नमस्कार होय छे तेथी ते ज आधार केम न बने ? शा खातर अलग आधार मानवो पडे छे ? उ०—ते नमस्कार पूज्यनो होवाथी पूज्यमां ज रहे एवो नियम नथी; केम के जे वस्तु जेनी 20 होय ते ज तेनो आधार होय एवो नियम नथी, बीजे पण ए जणाय छे। जेम—'देवदत्तनुं धान्य'। अहीं धान्य देवदत्तमां होतुं नथी पण आधारभूत क्षेत्रमा होय छे, तेम अहीं पण समजवू / बीजा नयोथी पण आ आधार विशे विशेष समजूती मळे छे। जेम संग्रहनय अभेदने परमार्थ मानतो होवाथी शुद्ध संग्रहनय वस्तुमात्रमा तेने ग्रहण करे छे, तो अशुद्ध संग्रहनय जीवनो धर्म होवाथी जीवमा रहे छ एम कहे छ / ऋजुसूत्र तो नमस्कार जीवनो गुण होवाथी ए जीवमां रहे छे, एम कहे छे / 25 शब्दादि नयो तो उपर्युक्त ज्ञानरूप जीवमां ज छे, पण बीजे नहि एम माने छे / 7, (893) श०–उपयोगनी अपेक्षाए नमस्कारनी स्थिति (जघन्य तेमज उत्कृष्टथी) अंतर्मुहूर्तनी छे अने लब्धिनी अपेक्षाए जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्तनी अने उत्कृष्टथी छासठ सागरोपमथी अधिक छे। नमस्कार अरिहंत आदिना संबंधथी पांच प्रकारनो छे / (8)
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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