________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। संतपयं पडिवन्ने पडिवजंते अ मग्गणं गइसुं। इंदिों काएँ वेएँ जोएं अ कसार्य-लेसासु // 10 // 896 // सम्मतनाणं-दसण-संजय-उवओगेओ अ आहारे / भासर्ग-परित्त-पजत्त-सुहुमे सैन्नी अ भवें चरमे // 11 // 897 // पलिआसंखिज्जइमे पडिवन्नो हुञ्ज खित्त लोगस्स / सत्तसु चउदसभागेसु हुज फुसणा वि एमेव // 12 // 898 // एग पडुच्च हिट्ठा तहेव नाणाजिआण सव्वद्धा / अंतर पडुच्च एगं जहन्नमंतोमुहुत्तं तु // 13 // 899 // उक्कोसेणं चेयं अद्धापरिअट्टओ उ देसूणो। णाणाजीवे णत्थि उ भावे य भवे खओवसमे // 14 // 900 // जीवाणणंतभागो पडिवण्णो सेसगा अणंतगुणा / वत्थु तरिहंताइ पंच भवे तेसिमो हेऊ // 15 // 901 // 10 तो अंतर ज नथी। 6 भावमां क्षयोपशमभावमां घणु करीने नमस्कार होय छ। 7. सर्व जीवोना अनंतमा भागे नमस्कार पामेला जीवो होय छे, अने बाकीना नहि पामेला तेथी अनंतगुणा होय छे / (8 अल्पबहुत्वद्वार * मतिज्ञाननी पेठे समजवू / ) 9 नमस्कारने योग्य अरिहंत आदि पांच वस्तु द्रव्य 15 छे, तेमनी ते योग्यतामां जे हेतु छे, ते आगळ कहेवाशे / (9-15) वि० 1. सत्-सत्ता नमस्काररूप सत्पदने पूर्व पामेला अने पामता जीवोनी अपेक्षाए गति, इंद्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेझ्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयम, उपयोग, आहारक, भाषक, परित्त, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव्य अने चरमभावनी आ द्वारमा विचारणा करवी / सत्ताद्वारनो विचार करतां नमस्कारने पहेलां पामेला जीवो चारे गतिमां नियमथी होय छे ज, 20 पण नमस्कार पामतानी भजना होय छे / अर्थात् नमस्कार पामता जीवद्रव्यो कदाचित् होय अने कदाचित् न होय / जो होय तो जघन्यथी एक, बे अथवा त्रण होय अने उत्कृष्टथी सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपमना असंख्येय भागना प्रदेशराशिप्रमाण होय छे / 2. द्रव्य प्रमाण संख्या, नमस्कार पूर्वप्रतिपन्न जीवद्रव्यो जघन्यथी सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपमना असंख्यातमा भावना प्रदेशराशिप्रमाण होय अने उत्कृष्टथी ते करतां विशेषाधिक होय / 3. क्षेत्र—लोकाकाश / नमस्कारवान् जीव ऊंचे अनुत्तर विमानमा जतां लोकना सात भाग प्रमाण क्षेत्रमा होय अने नीचे छठी पृथ्वीमा जतां पांच भाग प्रमाण क्षेत्रमा होय छे। 25 * जुओ आवश्यकसूत्रनी पीठिका।