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________________ 118 णमोकारणिजुत्ती। [प्राकृत (जीवस्वरूप नमस्कार पंचास्तिकायात्मक स्कंधरूप नथी, तेमज अविशिष्ट प्रामरूप पण नथी, परंतु जीवरूप नमस्कार पंचास्तिकायात्मक स्कंधनो एकदेश छे तेथी ते 'नोस्कंध'रूप छे अने चौद भूतग्रामनो पण एक देश होवाथी ते नोग्रामरूप छे' / ) तात्पर्य ए के, नैगम आदि नयोनी अपेक्षाए जीव ज नमस्कार छ। केमके जीव ज्ञानमय छे 5 अने नमस्कारमंत्र श्रुतज्ञानात्मक छ। आथी पंच परमेष्ठीवाचक नमस्कारमंत्र जीव छे / तेनी रूपाकृति स्वरूप शब्दो अजीव कही शकाय पण तेनो भाव तो ज्ञानमय छे ते जीवस्वरूप छे / द्रव्य अने गुणना प्रश्नोमां गुणोनो समुदाय द्रव्य कहेवाय छे, अने द्रव्य तेमज गुणमां कथंचित् भेदाभेदात्मक संबंध छे तेथी नमस्कारमंत्र कथंचित् द्रव्यात्मक अने कथंचित् गुणात्मक छ / (2. स्वामित्व-अधिकारित्व-'नमस्कार कोने करवामां आवे छे ?') 10 नमस्कार पामता जीवो एक अथवा अनेक होय छे एम संग्रहनय सिवायना बधा नयो माने छे। पूर्वप्रतिपन्न नमस्कारवाळा जीवो तो अवश्य अनेक होय छे, एम ते नयोथी जणाय छ / केमके, चारे गतिमां पूर्वप्रतिपन्न नमस्कारवाळा सम्यग्दृष्टि जीवो सदा असंख्याता होय छ / संग्रहनय सामान्यवादी होवाथी पूर्वप्रतिपन्न अने प्रतिपद्यमान ए उभय पक्षमा बहुत्व मानतो नथी / आ उपरथी 'नमस्कार कोनो छे ?' ए प्रश्नना उत्तरमा एक जीव अथवा अनेक जीवो नमस्कारना 15 स्वामी छे एम सिद्ध थाय छे। प्र-नमस्कारनो स्वामी जीव छे तो ते नमस्कार करवायोग्य पूज्य जीव स्वामी छे के नमस्कार करनार जीव स्वामी छे ? पर्यायनयना मते पर्याय ज सत्य वस्तु छ। द्रव्य तो उपचारथी छ। पर्यायथी भिन्न द्रव्य होतुं नथी, आथी (ज्ञान )गुण पर्याय ज नमस्कार छ। जेम घट तेना रूपथी भिन्न नथी तेम ज्ञान आदिथी भिन्न एवो जीव नथी, एवो पर्यायनयनो अभिप्राय छ। 2 सर्वपंचास्तिकाय ते 'स्कंध' कहेवाय छ। जीव ते स्कंधनो एक देश-भाग होवाथी नमस्कार पण तेनो एक देश छे केमके, नमस्कारवान् अने नमस्कार ए बनेनो अहीं अमेद उपचार छे, तेथी ते तेनो एकदेश छ। ए कारणे नमस्कारवान् जीव 'नोस्कंध रूप कहेवाय छ। एकेन्द्रिय आदि जीवना चौद भेदरूप भूतग्राम ते 'ग्राम' कहेवाय छे। ते ग्रामनो देव, मनुष्य आदिरूप नमस्कारवान् जीव एकदेश होवाथी नमस्कार 'नोग्राम' कहेवाय छ। वळी शब्द, समभिरूढ अने एवंभूत-ए त्रणे नयोना अभिप्राये जीव ज्यारे नमस्कारना परिणामवाळो थाय त्यारे ज नमस्कार कहेवाय छे, अने बाकीना नेगम आदि अशुद्ध नयोनी अपेक्षाए नमस्कारमा उपयोग रहित होय तो पण जो लब्धिसहित होय अथवा नमस्कारने योग्य होय तेवो जीव नमस्कार कहेवाय छ। प्र०-नमस्कार भूतग्रामनो एकदेश होवा छतां ते एक छे के अनेक ? उ०-आ हकीकत नयोना अभिप्रायथी जाणी शकाय एम छे। संग्रहनय नमस्कार जातिसामान्यथी सदा एक ज नमस्कार होय छे एम जणावे छे अने व्यवहारनय एक नमस्कारवान् जीवने एक नमस्कार माने छे, तेमज बहु जीवोने बहु नमस्कार माने छ / वळी, ऋजुसूत्र वगेरे नयो वर्तमान समयवा स्वकीय वस्तुने ज वस्तु माने छे तेथी तेमना मते उपयोगवान् बहु जीवो नमस्कार छ /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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