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________________ 116 णमोकारणिजुत्ती। [प्राकृत आ प्रकारना पदोमांथी अहीं नैपातिक पदनो अधिकार छे, जे 'नमः' पद अर्हत् वगेरेनी आदिमां के अंतमां आवेलुं छे ते 'नैपातिकपद' छ / नमस्कारमंत्रमा प्रयुक्त शब्दोनुं वर्गीकरण करीने तेना अर्थोनुं अवधारण करवू ए पदद्वारनुं प्रयोजन छे / शब्दोनी निष्पत्तिने ध्यानमा राखी नैपातिक वगेरे शब्दोनो अर्थ अने तेनुं रहस्य 5 जाणवू ए ज आ द्वारनो उद्देश छ। तात्पर्य ए छे के, नमस्कारमंत्रना पदोनी प्रकृति अने प्रत्ययनी दृष्टिए व्याख्या करवी ए पदद्वार छे। 4. पदार्थ द्वार। नमस्कारमंत्रना पदोनी द्रव्य अने भावपूर्वक व्याख्या करवी ते पदार्थ द्वार छ / 'नमो अरिहंताणं आ पदोमा 'नमो' शब्द पूजार्थक छ। पूजा बे प्रकारे संपन्न थाय छे-१ द्रव्य संकोचथी 10अने 2 भाव संकोचथी। द्रव्यसंकोचनो अर्थ ए छे के, हाथ, मस्तक वगेरे झुकाववां-नम्र बनाववां अने भावसंकोचथी ए अभिप्राय छे के, अरिहंत वगेरेना गुणोमां विशुद्ध मनने जोडवू / द्रव्यसंकोच अने भावसंकोचना संयोगथी चार भंग थाय छे-१. द्रव्यसंकोच होय पण भावसंकोच न होय / 2. भावसंकोच होय पण द्रव्यसंकोच न होय / 3. द्रव्यसंकोच होय अने भावसंकोच पण होय / 4. द्रव्यसंकोच न होय तेम भावसंकोच पण न होय / / 15 हाथ, मस्तक वगेरेने नम्र करे पण अंतरंग परिणतिमां नम्रतानो भाव प्रवेश न पामे अर्थात अंतरंग परिणतिमां श्रद्धानो अभाव होय अने श्रद्धा होवानो देखाव करे ते प्रथम भंगनो अर्थ छ। आ रीते करेला नमस्कारतुं फळ जेम पालकने मळ्युं नहीं। बीजा भंग अनुसार अंतरंग परिणाममां श्रद्धाभाव होय पण बहारथी श्रद्धा न बतावे; अर्थात नमस्कार करती वेळा अंतरंग श्रद्धाभाव होवा छतां बहारथी हाथ अने मस्तक झुकावे नहीं / अनुत्तर 20 विमानवासी देवो आ रीते नमस्कार करे छे, तेनुं फळ तेओ पामे छे। त्रीजा.भंग मुजब अंतरंग परिणाममां श्रद्धाभाव होय अने हाथ, मस्तक झुकावीने नमस्कार करे। शांबकुमारे आ रीते करेलो हतो। चोथा भंग प्रमाणे अंतरंग परिणाममां श्रद्धा न होय अने हाथ, मस्तक पण झुकावे नहीं। आवो प्रकार निष्फळ छे। तात्पर्य ए छे के, द्रव्यसंकोच अने भावसंकोचमां, भावसंकोच एकांते श्रेष्ठ छे; केमके ते ज 25 बाह्य शुद्धिनुं पण कारण छ। 1. तीर्थंकर नेमिनाथ प्रभु ज्यारे द्वारकामां पधार्या त्यारे कृष्ण महाराजे तेमना पालक अने शांबकुमार नामना पुत्रोने कह्यु : 'आवती काले प्रभुने जे पहेली वंदना करशे तेने इनाम तरीके घोडो आपवामां आवशे। आ सांभळी पालके सवारमा वहेला ऊठी घोडा उपर बेसी प्रभु ज्यां समवसर्या हता त्यां जईने ईनामनी लालचथी भावरहितपणे केवळ शरीरथी वंदना करी। ज्यारे शांबकुमारे सवारमा ऊठतांवेंत शय्यामा रह्या रह्या प्रभुने भाववंदना करी। आ बनेमा पहेलो नमस्कार कोणे कर्यो ते जाणवा ज्यारे कृष्ण महाराजे प्रभु आगळ जईने पूछ्युं त्यारे नेमिनाथ प्रभुए कह्यु के, 'शांबकुमारे प्रथम वंदना करी छ। आथी शांब कुमारने ईनाम तरीके घोडो आपवामां आव्यो।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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