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________________ नमस्कार स्वाध्याय / 115 4. भाव नमस्कार - उपयोगवंत सम्यग्दृष्टि जीव अरिहंत वगेरेने नमस्कार करे ते भाव नमस्कार। नमस्कार अने नमस्कारवानना अभेद उपचारथी निहव तेमज द्रव्यने माटे जे कोई विद्या, मंत्रदेवता वगेरेने नमस्कार करे ते 'द्रव्य नमस्कार' कहेवाय छे; ज्यारे उपयोगवंत सम्यग्दृष्टि जीव अरिहंत वगेरेने नमस्कार करे ते 'भाव नमस्कार' कहेवाय छ / . द्रव्य नमस्कार बे प्रकारनो छे-१ आगमथी अने 2 नोआगमथी। जे उपयोग रहितपणे / 'नमः' नमस्कार भणे ते आगमथी द्रव्य नमस्कार कहेवाय / नोआगमथी द्रव्य नमस्कार त्रण प्रकारे छे-१ ज्ञशरीर (ज्ञायक), 2 भव्य शरीर अने 3 तद्व्यतिरिक्त / जेणे नमस्कार जाणेल छे एवा आत्मानुं शरीर ते 'ज्ञशरीर द्रव्यनमस्कार' कहेवाय छे / जे शरीरथी आत्मा भविष्यमा नमस्कार जाणशे ते शरीर 'भव्यशरीर द्रव्यनमस्कार' कहेवाय छे अने मिथ्यात्वथी रंगायेल निह्नव वगेरे भावथी जे नमस्कार करे छे ते अने सम्यग्दृष्टि 10 जीव उपयोग रहितपणे जे नमस्कार करे ते 'तद्व्यतिरिक्त द्रव्यनमस्कार' कहेवाय छ। ___मिथ्यादृष्टिनुं ज्ञान सद्, असना विशेषोथी रहित होय छे, ते भवहेतुक होय छे, स्वेच्छाए प्राप्त करेलुं होय छे अने तेमां ज्ञानना फलनो अभाव होय छे तेथी ते अज्ञानरूप छे / एटले भावपूर्वक नमस्कार करनारा निह्नवो जे नमस्कार करे ते, तेमज द्रव्यने माटे देवता वगेरेने नमस्कार कराय ते, अगर भय वगेरेना कारणथी, जेम भिखारी राजाने नमस्कार करे तेम, असंयतिने नमस्कार 15 कराय ते 'द्रव्य नमस्कार' कहेवाय छे। भाव नमस्कार पण बे प्रकारनो छे-१ आगमथी अने 2 नोआगमथी। नमस्कारना अर्थने जाणनार अने तेमां उपयोगवान् जे होय ते 'आगमथी भावनमस्कार' कहेवाय छे, अने नमस्कार करवामां मन वडे उपयोगवंत 'अरिहंतने नमस्कार थाओ' एम वचनवडे बोले तेमज हाथ-पग संकोचवा वडे नमस्कार करे त्यारे ते नमस्कार 'नोआगमथी भावनमस्कार' कहेवाय छे।। 3. पद द्वार / जेनी द्वारा अर्थनो बोध थाय ते 'पद' कहेवाय छे। तेना पांच प्रकारो छे-१ नामिक, 2 नैपातिक, 3 औपसर्गिक, 4 आख्यातिक अने 5 मिश्र।। 1. संज्ञावाचक प्रत्ययोथी सिद्ध थता शब्दो ते 'नामिक पद' कहेवाय छे, जेम-अश्व, घट वगेरे। 2. अव्ययवाची शब्द 'नैपातिक पद' कहेवाय छे, जेम-खलु, ननु वगेरे। 3. उपसर्गवाचक शब्द 'औपसर्गिक पद' कहेवाय छे, जेम-परि, परा वगेरे।। 4. क्रियावाचक धातुओथी निष्पन्न थता शब्दो 'आख्यातिक पद' कहेवाय छे, जेम-धावति, पचति वगेरे। 5. कृदंत-कृत्प्रत्यय अने तद्धित प्रत्ययोथी निष्पन्न शब्दो 'मिश्रपद' कहेवाय छे, जेम-संयत, नायक, पावक वगेरे / 20 25 30
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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