________________ णमोकारणिजुत्ती। [प्राकृत निहाइ दव्व-भावोवउत्त जं कुज सम्मदिट्ठी उ / नेवाइअं पयं दव्व-भावसंकोयणपयत्थो॥ 4 // 890 // कर्मी जीव वाचना लेवा छतां नमस्कारने पामतो नथी ज्यारे लघुकर्मी जीव वाचना विना पण तदावरण कर्मना क्षयोपशमथी ते नमस्कारने अवश्य पामे छे, माटे लब्धि ज तेनो हेतु छे, वाचना नथी / 5 पहेला त्रण नयो समुत्थान, वाचना अने लब्धिने कारण माने छ / ऋजुसूत्र वाचना अने लब्धिने कारण माने छे अने शब्द, समभिरूढ तेमज एवंभूत ए नयो एक ज लब्धिने ज कारण माने छे'। 2-3, (888-889) 2. निक्षेप द्वार। श-निह्नव वगेरे जे नमस्कार करे ते द्रव्य नमस्कार छे अने उपयोगवंत सम्यग्दृष्टि जे 10 नमस्कार करे ते भाव नमस्कार छ। 'नमः' ए नैपातिक 'पद' छे अने द्रव्य, तथा भाषनो संकोच ते 'नमो' शब्दनो 'पदार्थ' छे / (4) वि०-निक्षेप एटले न्यास। दरेक शब्दना ओछामा ओछा चार अर्थो जोवामां आवे छे। ए ज चार अर्थ ए शब्दना अर्थ-सामान्यना चार विभाग छे / ए विभागने ज निक्षेप एटले 'न्यास' कहे छे, ते न्यास चार प्रकारनो छ / 16 1. नाम निक्षेप-जे अर्थ व्युत्पत्तिसिद्ध न होय पण फक्त लोकोना संकेतबळथी जाणी शकायते। 2. स्थापना निक्षेप-जेमां मूळ वस्तुनो आरोप करायो होय ते। 3. द्रव्य निक्षेप-भाव निक्षेपनी पूर्व अथवा उत्तर अवस्था होय ते। 4. भाव निक्षेप-जे अर्थमां व्युत्पत्तिनिमित्त अने प्रवृत्तिनिमित्त घटतुं होय ते / ए रीते नमस्कारना चार निक्षेपो थाय छ / 1. नाम नमस्कार-कोई वस्तुविशेषने 'नमः- नमस्कार' एवं नाम आप्युं होय ते नाम नमस्कार / 20 2. स्थापना नमस्कार-कोई वस्तुविशेषमां 'नमः' एम लखीने स्थापना करवामां आवे, ते स्थापना नमस्कार। 3. द्रव्य नमस्कार-निह्नव वगेरे जे नमस्कार करे ते अथवा भाव नमस्कारनी पूर्व के उत्तर अवस्था होय ते द्रव्य नमस्कार / १.प्र०-वाचना क्षयोपशमरूप कारणर्नु परंपरा कारण होवाथी नमस्कारनुं कारण छे एम केम न मनाय? ७०-ना, एम मानवामां आवे तो, बधी बाह्य वस्तु पृथ्वी, आसन, शयन, आहार, वस्त्र, पात्र वगेरे जे क्षयोपशमना कारण छे तेथी ते पण परंपराए नमस्कारर्नु कारण बनी जशे। प्र०-वाचनारूप शब्द मात्रमा ज कारणनो नियम शा माटे कहो छो? परंपराए तो बधी बाह्य वस्तुओ पण नमस्कारना कारणने उपकारी छे, तोपण वाचना नजीकर्नु उपकारी होवाथी ते तेनुं कारण छ एम केम न मनाय ? उ०-एम थाय तो तो मात्र लब्धिने ज तेनुं ऐकांतिक कारण मानी लेवू जोईए; केमके ते ज नमस्कारनुं नजीकर्नु कारण छे / जो एम मानवामां आवे तो वाचना मात्रनो नियम सिद्ध नहीं थाय, अने पूर्वोक्त पृथ्वी, आसन, शयन वगेरे पण तेनां कारण बनी अशे।