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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 113 शके, पण बीजा एकांतवादीओ एवा एकवचनना प्रयोगथी समास करी शकता नथी। केम के ते एकांतवादीओनो मत एवो छे के, वस्तुमा एक ज समये परस्पर विरुद्ध एवा धर्मो-गुणो रहेता नथी। ज्यारे अनेकान्तवादीओ एक ज वस्तुमा एक ज समये परस्पर विरोधी गुणो रही शके एम माने छे'। 1. समुत्थान-प्रणिपात माटे शरीर( ना हाथ-पग वगेरे )नुं समुचित उत्थान / तेनाथी नमस्कार उत्पन्न थाय छे / नमस्कार माटे देह सिवाय बीजु कारण सांभळवामां आवतुं नथी। आथी 5 नमस्कारनो आधार अने सामीप्य देहर्नु ज गणाय। नमस्कारना भावनी सत्ता तेमां होवाना कारणे समुत्थानथी नमस्कार उत्पन्न थाय छे। 2. वाचना-बीजा पासेथी अध्ययन ग्रहण करवं, तेनुं श्रवण करवू अथवा तेनुं अर्थ सहित ज्ञान प्राप्त करतुं अथवा तेनो उपदेश लेवो तेने 'वाचना' कहे छे। ते नमस्कारनुं कारण होवाथी तेनाथी नमस्कार उत्पन्न थाय छ / 10 3. लब्धि-तेवा प्रकारनां श्रुतावरणीय कर्मोनां आवरणनो क्षयोपशम थाय तेने 'लब्धि' कहे छे। ते लब्धिथी नमस्कार उत्पन्न थाय छे / ____ आ त्रण प्रकारना स्वामित्वरूप कारणथी आदि नैगम, संग्रह अने व्यवहार ए त्रण नयोमा समुत्थान, वाचना अने लब्धि ए त्रणे कारणो होय छे। ऋजुसूत्रनयमां समुत्थान सिवायनां बे जयाचना अने लब्धि कारणो होय छे; केमके, तेमां समुत्थान घटतुं नथी अने शब्द, समभिरूढ तेमज 15 एवंभूत ए नयोमा मात्र लब्धि ज एक कारण मनाय छे; तेमां वाचना घटती नथी। केमके, भारे 1. आ विषयने नयना प्रकारोथी विस्तारपूर्वक जणावे छे-१ नैगम, 2 संग्रह, 3 व्यवहार, 4 ऋजुसूत्र, 5 शब्द, 6 समभिरूढ अने 7 एवंभूत; एम सात नयो छ / नैगमनय बे प्रकारे छ। 1 सर्वसंग्राही नैगम अने 2 देशसंग्राही नैगम। - सर्वसंग्राही नैगमनय सामान्य मात्र विषय- अवलंबन करतो होवाथी अने नमस्कार पण सामान्यमा अंतर्गत होवाथी तेना मते नमस्कार उत्पाद अने व्ययथी रहित छे। बाकीना नयो विशेषग्राही होवाथी तेनी उत्पत्ति अने नाश थया करे छे / जो उत्पत्ति अने नाश न थतो होय तो ते नमस्कार वन्ध्यापुत्रनी माफक अवस्तु गणात; पण नमस्कार वस्तु छे तेथी ते उत्पन्न थाय छे। प्र०-बाकी नयोमां संग्रहनय तो विशेषने ग्रहण करतो नथी, ए तो सामान्यनुं ग्रहण करे छे तो बाकीना नयोमा तेने शा खातर गण्यो? उ०-संग्रह नयनो प्रथमना सर्वसंग्राही नैगम नयमा समावेश थाय छे एटले बाकीना नयोमा संग्रहने गणवानो नथी। मतलब के, सामान्य एवा 'सत्ता' वगेरे धर्मोनी अपेक्षाए नमस्कार मंत्र अनुत्पन्न छे; ज्यारे संस्थान, आनुपूर्वी वगेरे विशेष धर्मोनी अपेक्षाए ते उत्पन्न थाय छ / प्र०-सत् मात्रग्राही आदि नैगम नयनी अपेक्षाए नमस्कार अनुत्पन्न एटले नित्य छे तो ते जणातो केम नथी? उ०-आवरणना कारणे जेम आत्मानुं खरूप जणातुं नथी तेम नमस्कारने पण कोई जाणी शकतुं नथी; एटले अभावना कारणे नमस्कार जणातो नथी एम नहि. पण आवरणथी ते जणातो नथी / (विशेष समजूती माटे जूओ 'तत्त्वार्थसूत्र' अध्याय 1, सूत्र 34-35, उपरनुं पं. सुखलालजीनुं हिंदी विवेचन-पृ. 58 थी 75.) 15
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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