________________ वद्धमाणविजाविही। मयोपोषणपूर्व कोष्ठागारे निक्षिपेत् धान्यराशिर्न व्यति / मुखं कर्ण वाऽभिमत्र्य स्वपिति स्वमे शुभाशुभं वक्ति / अनयैवाभिमन्य सर्वान् भोजयति, छुते च दैवापराजितो भवति // इति गौतमवाक्यम् // वाचकश्रीहंससोमगणिना लिपीकृतम् // श्रीः॥ आ ज विद्याथी (धान्यना बीजने ) मंतरीने, उपवास करी धान्यभंडारमा नाखवामां आवे 5 तो अनाजनो ढगलो खूटतो-ओछो थतो नथी / आ विद्याथी मों अगर कानने मंतरीने सूई जाय तो तेने स्वप्नमां शुभ-अशुभ कार्यनी सूचना मळे छे / आ विद्याथी ज मंतरीने गमे तेटला माणसोने जमाडी शकाय, जुगारमा नसीबना कारणे अपराजित बने छ / आ गौतमस्वामीनुं वचन छ। . (प्रति-परिचयः) 'उवहाणविहिथुत्त'मां वर्धमानविद्यानो उल्लेख आवे छे, तेथी ए विद्यानो परिचय विधि10 सहित कराववा माटे आ रचना अहीं आपवामां आवे छे / जो के 'वर्धमानविद्या' अनेक प्रकारे जूदे जूदे स्थळे नोंधायेवी मळे छ। 'महानिशीथसूत्र'मां एनो पाठ आपेलो छे, तेमज 'सूरिमन्त्रकल्पसंदोह' मां पण वर्धमानविद्याना पाठो अने कल्पो जोवामां आवे छे / वळी, 'नमस्कार-व्याख्यानटीका'मां पण आ विद्यानो पाठ आपेलो छे, पण तेमां केटलोक पाठभेद छ / आ रचनामां 'वर्धमानविद्या' नो पाठ विधिसहित छे अने व्यवस्थित रीते 16 तारवीने आपेलो छे ते साधकने उपयोगी थई पडशे / आ रचनानी एक पानानी प्रति पूज्य मुनिराज श्रीयशोविजयजी महाराजश्री पासेथी मळी हती; तेना उपरथी आ विधिने संपादित करवामां आवेल छे अने तेनो अनुवाद पण आप्यो छे।