________________ विभाग] . नमस्कार स्वाध्याय। देविंदोवमरिद्धी दयावरा विणयदाणसंपन्ना। निम्विन्नकामभोगा धम्म सयलं अणुढेउं // 52 // सुहझाणानलनिद्दघाइकम्मिधणा महासत्ता / उप्पन्नविमलनाणा विहुयमला झत्ति सिझंति // 53 // इय विमलफलं सुणिउं जिणस्स महमाणदेवसरिस्स / वयणा उवहाणमिणं साहेह महानिसीहाओ // 54 // उपहाणविही समत्तो॥ 15 देवेन्द्र जेवी ऋद्धिवाळा, दयामां तप्तर, विनय अने दानथी युक्त, कामभोगथी निर्वेद पामेला, सकल धर्मने सेवीने शुभ ध्यानरूपी अग्निथी घातीकर्मरूपी इंधणने बाळनार एवा ए महान (सत्त्ववाळा ) आत्माओ निर्मळ ज्ञाननी प्राप्तिवाळा मलरहित ( बनीने ) सिद्धिपदवीने शीघ्रत: 10 पामे छे // 50-53 // आवी रीते ( उपर कह्या मुजब ) देवो अने आचार्योवडे (पण) पूजाता' एवा श्री जिनेश्वर भगवानना वचनथी श्री महानिशीथसूत्रना आधारे 'आ उपधान विमल फळवारों छे' एम सांभळीने तेने तमे साधो // 54 // परिचय ___ आ 'उपधानविधिस्तोत्र' श्रीजिनप्रभसूरिरचित 'विधिमार्गप्रपा' नामक ग्रंथ (प्रकाशकः श्रीजिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फंड, सूरत, ग्रंथांकः 44, वि० सं० 1997 ) मांथी उपलब्ध थयुं छे / नमस्कारमंत्रनी वाचना लेवा माटे जे प्रकारनी तपस्या करवानी आवश्यकता रहे छे ते तपस्याप्रकार उपर श्रीमानदेवसूरिए करेली आ रचना ठीक ठीक प्रकाश पाडे छे। श्रीजिनप्रभसूरिए आ स्तोत्रने पोताना ग्रंथमां मानभेर स्थान आप्युं छे। श्रीमानदेवसूरि नामना बे आचार्यो थयानुं वर्णन पट्टावलीओमाथी जाणवा मळे छ / वेमा पहेला मानदेवसूरिनो 20 मा पट्टधर तरीके अने बीजा मानदेवसूरिनो 28 मा पट्टधर तरीके उल्लेख करायो छे। पहेला मानदेवसूरि ते 'लघुशांतिस्तोत्र' ना कर्ता, जेओ वीर निर्वाण सं० 721 (वि० सं० 261) पछी स्वर्गवासी बन्या; अने बीजा मानवदेवसूरि प्रसिद्ध आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिना मित्र हता एम जाणवा मळे छे / केटलीक पट्टावलीओमां बने मानदेवसूरिनो 21 मा अने 25 29 मा पट्टधर तरीके पण क्रम बताव्यो छे / आ बंने पैकी कया मानदेवसूरिए आ स्तोत्रनी रचना करी ए जाणवानुं साधन उपलब्ध नथी / 20 १बीजो अर्थ वधु संगत न लागवाथी 'महमाण' नो अर्थ 'पूजाता' एवो करीने, आ अर्थ कर्यो छे,