________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। अह सोहणतिहि-करणे-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्गम्मि / अणुकूलम्मि ससिबले सस्से सस्सेयसमयम्मि // 22 // निययविहवाणुरूपं संपाडियभुवणनाहपूएणं / फुडभत्तीए विहिणा पडिलाहियसाहुवग्गेण // 23 // भत्तिभरनिब्भरेणं हरिसवसोल्लसियवहलपुलएणं / सद्धा-संवेग-विवेग-परमवेरग्गजुत्तेणं // 24 // निट्टियघणराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-मलकलंकेणं / अइउल्लसंतनिम्मलअज्झवसाएण अणुसमयं // 25 // तिहुयणगुरुजिणपडिमाविणिवेसियनयणमाणसेण तहा / जिणचंदवंदणाए धन्नोऽह्मि मन्नमाणेण // 26 // निययसिररइयकरकमलमउलिणा जंतुविरहिओगासे / निस्संकं सुत्तत्थं पयं पयं भावयंतेण // 27 // जिणनाहदिवगंभीरसमयकुसलेण सुहचरित्तेणं / अपमायाईबहुविहगुणेण गुरुणा तहा सद्धिं // 28 // चउविहसंघजुएणं विसेसओ निययबंधुसहिएणं / इय विहिणा निउणेणं जिणबिंबं वंदणिजं च // 29 // शुभ तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्न अने अनुकूळ तेमज प्रशस्त चंद्रबळ होय त्यारे प्रशस्त समयमा पोताना वैभव अनुसार भुवननाथ (श्री जिनेश्वरदेव )नी पूजा करीने अने विधिपूर्वक प्रगट भक्तिथी साधुवर्गने वहोरावीने भक्तिना भारथी नम्र बनेलो; हर्षथी उल्लसित थयेला पुष्कळ रोमयुक्त (हर्षथी विशेष रोमांचित थयेलो ); श्रद्धा, संवेग, विवेक अने परम 20 वैराग्यवाळो; जेना धन राग, द्वेष, मोह, मिथ्यात्वरूप कलंको दूर थया छे एवो; प्रतिसमय अत्यंत प्रवर्धमान निर्मळ अध्यवसायवाळो; त्रिभुवनना गुरु एवा श्रीजिनेश्वरभगवंतनी प्रतिमामां दृष्टि अने मनने परोवतो; श्रीजिनेश्वरदेवने करायेल वंदना वडे 'हुं धन्य बन्यो छ' एम मानतो; जंतुथी रहित स्थळमां पोताना मस्तक उपर रची छे करकमळनी अंजलि जेणे एवो अने पदे पदे सूत्रना अर्थने निःशंकपणे मावतो एवो ते श्री जिनेश्वर भगवाने बतावेला गंभीर सिद्धांतमां निपुण, पवित्र 25 चरित्रवाळा तेमज अप्रमाद वगेरे बहुविध गुणवाळा एवा गुरुनी साथे, चतुर्विध संघनी साथे तथा विशेषतः पोताना स्वजन संबंधी बंधुवर्गनी साथे आ (कहेली) विधिथी कुशळपणे श्री जिनेश्वर भगवानना बिंबने वंदन करे // 22 थी 29 // 15 1 सश्रेयःसमये-मांगलिक समये /