________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / राईभोयणविरई दुविहं तिविहं चउव्विहं वावि / नवकारसहियमाई पच्चक्खाणं विहेऊण // 8 // एकेण सुद्धअच्छंबिलेण इयरेहिं दोहिं उववासो / नवकारसहियएहिं पणयालीसाए उववासो॥९॥ पोरसिचउवीसाए होइ अवड्डेहिं दसहिं उववासो / विगईचाएहिं छहिं एगट्ठाणेहिं य चऊहिं // 10 // जीएण निव्वियतियं पुरिमड्डा सोलसेव उववासो। एक्कासणगा चउरो अट्ठ य बिक्कासणा तह य // 11 // भयवं! पभूयकालो एवं करेंतस्स पाणिणो होजा / तो कहवि होज मरणं नवकारविवन्जियस्सावि // 12 // नवकारवञ्जिओ सो निव्वाणमणुत्तरं कह लभिञ्जा। तो पढमं चिय गिण्हइ, उवहाणं होउ वा मा वा // 13 // गोयम ! जं समयं चिय सुओवयारं करिञ्ज सो पाणी / तं समयं चिय जाणसु गहियतयह जिणाणाए // 14 // ते (पूर्वोक्त बालादि) रात्रिभोजननो त्याग करीने (सांजे ) दुविहार, त्रिविहार के 15 चउविहार- अने सवारे नवकारसी वगेरेनां पञ्चक्खाण करीने उपधानप्रमाण पूरुं करे // 8 // ___ एक शुद्ध-उत्कृष्ट आयंबिल वडे अथवा बीजा ( अनुत्कृष्ट) बे आयंबिले एक उपवास . गणाय अने पिस्तालीश नवकारसी (नां पञ्चक्खाण ) करवाथी एक उपवास गणाय छे // 9 // ___चोवीश पोरसीए अगर दश अवड्ढे एक उपवास गणाय छे / वळी, छए विगईओनो छ अहोरात्र त्याग करवाथी अथवा चार एकल ठाणां करवाथी एक उपवास गणाय छे // 10 // 30 त्रण नीवीओ करवाथी अगर सोळ पुरिम करवाथी एक उपवास गणाय / तेमज चार एकासणां अने आठ बेआसणां करवाथी एक उपवास गणाय छे // 11 // - शंका-भगवन् ! आ रीते करतां जीवने-मनुष्यने लांबो काळ वीती जाय अने कोई कारणे नवकार न पामतां ज मरण थई जाय तो नवकारथी रहित एवा जीवने अनुत्तर ( श्रेष्ठ ) एवं निर्वाण (मुक्ति) सुख क्याथी मळे ? तेथी उपधान थाय के न थाय तो पण प्रथम ज नवकार ग्रहण 25 करवो जोईए // 12-13 // समाधान-हे गौतम ! जे समये ते जीव श्रुतनो उपचार करे ( श्रुत लेवानी विधि आदरे) ते ज समये ते जीव श्री जिनेश्वरभगवाननी आज्ञाथी नमस्कारना अर्थनो ग्रहण करनारो बन्यो छे एम जाणवू // 14 // 1 शुद्ध आयंबिलमां केवळ भात लई शकाय। पोताने जरुर होय तेटला भात एक पात्रमा नाखवामां आवे छे अने पछी तेना उपर चार आंगळ (ऊंचाईमां लगभग 2") जेटलुं पाणी नाखवामां आवे छे।। 2 वर्तमानकाळमां-एक उपवास=४८ नवकारसी, 24 पोरसी, 16 साढपोरसी, 16 नीवी (एकासणाबिनानी), 8 पुरिमड्ड, 4 अवड्ड, 8 ब्यासगा, 4 एकासणा, 3 लुक्खी नीवी, 2 आयंबिल अथवा 1 शुद्ध आयंबिल गणाय छ।