________________ 10 . चैत्यवंदनमहाभाष्ये नमस्कारसूत्रस्य उल्लेखः। [प्राकृत एएसिं सव्वेसि अन्नसिं च दव्वभावभेदभिन्नाणं दधिदुव्वाइतवोविहाणाईणं मंगलाणं किं ?, पढमं आईए, अरिहंताईणं थुई चेव हवइ मंगलं हितादिविधानसमर्थम् , मंग्यते हितादि अनेनेति व्युत्पत्तेः भावमंगलतया ऐकान्तिकत्वात् आत्यन्तिकत्वाच्च / एवं प्रयोजनाद्यप्युक्तम् / तथा नियुक्तिः इत्थ य पओयणमिमं कम्मखय मंगलागमो चेव / इहलोयपारलोइय दुविहफलं तत्थ दिटुंता // ' इहलोइ अत्थकामा आरुग्गं अभिरईइ णिप्फत्ती / सिद्धी य सग्ग सुकुले उववाओ ईय परलोए // ' किंच ताव न जायइ चित्तेण चिंतियं पत्थियं च वायाए / काएण समाढत्तं जाव न सुमरिओ नमुक्कारो॥ एस समासत्थुत्ति / विस्तरार्थिना तु नवकारपंजिका नवकारपटल सिद्धचक्र बृहन्नमस्कारफलादि शास्त्राण्यवलोकनीयानीति // छ // ___ आ मंगलोमां अने बीजां पण सर्व दहीदुर्वा वगेरे द्रव्यमंगलो अने तपोनुष्ठान वगेरे भावमंगलोमां अरिहंत वगैरेनी स्तुति प्रथम मंगल छे / अर्थात् हित वगेरे करवामां समर्थ छे, 15 कारणके जे हित वगेरे करे तेनुं नाम मंगल / आ प्रमाणे ' मंगल' शब्दनी व्युत्पत्ति थती होवाने लीधे अरिहंत वगेरेनी स्तुति भावमंगलपणाथी एकांते अत्यंत हित करनार छ / आ रीते आमां प्रयोजन वगैरे पण कहेवाई गयुं / ( आवश्यक ) नियुक्तिमा कयुं छे के ___ "नमस्कार करवामां कर्मनो क्षय अने मंगलनु आगमन ए प्रयोजन छे तेमज लोकसंबंधी अने परलोकसंबंधी एम बे प्रकारनुं फळ छ / तेनां दृष्टांतो नीचे प्रमाणे छ / ":20 "आ लोकमां अर्थ, काम, आरोग्य, अने अभिरतिनी प्राप्ति थाय छे / अने परलोकमां सिद्धि, स्वर्ग अने उत्तम कुळनी प्राप्ति थाय छे।" बीजुं पण कयुं छे के "मनथी चिंतलं, वचनथी प्रार्थेलं अने कायाथी आरंभेलं कार्य त्यांसुधी ज सिद्ध थतुं नथी ज्यांसुधी नमस्कारमंत्रनुं स्मरण करवामां आवतुं नथी।" (अर्थात् नमस्कारमंत्रनुं स्मरण करवामां 25 आवे तो मनथी ईच्छेखें, वचनथी प्रार्थेलु अने कायाथी प्रारंभेलं दरेक कार्य सिद्ध थई जाय छ।) आ प्रमाणे नमस्कारमंत्रनो संक्षिप्त अर्थ छ / विस्तारना अर्थीए नवकारपंजिका, नवकारपटल, सिद्धचक्र, बृहन्नमस्कारफल वगेरे शास्त्रोनुं अवलोकन करवू / 1 आवश्यकनियुक्ति गा०१०२२ / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 159 2 आवश्यकनियुक्ति गा० 1023 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 160