________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। ताणं अन्नं तु नो अस्थि जीवाणं भवसायरे। बुड्डताणं इमं, मुत्तुं नमुक्कारं सपोययं // 6 // अणेयजम्मंतरसंचियाणं, दुहाण सारीरियमाणसाणं / कत्तो य भव्वाण भविज नासो, न जाव पत्तो नवकारमंतो // 7 // अवि य नवकाराओ अन्नो, सारो मंतो न अस्थि तियलोए / तम्हाउ अणुदिणं चिय पढियव्वो परमभत्तीए // 8 // एस चूलाए पढमो उद्देसओ-एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो, किंविहो उ ? मंगो निव्वाणसुक्खसाहणिकखमो सम्मदंसणाइआरहओ अहिंसालक्खणो धम्मो तं मे लाइज्जति मंगलं 1, मं वा भवाओ-संसाराओ गलिज्जा तारिज वा इति मंगलं 2, बद्धपुट्ठनिधत्तनिकाइयट्ठ-10 पयारकंमरासिं मे गालिज्जा विलिज्जविज्जत्ति वा मंगलं 3 / - "संसाररूपी समुद्रमा डूबता जीवोने नमस्काररूपी नौका सिवाय बीजं कई रक्षण करनार न्थी // 6 // ... "भव्य मनुष्योए ज्यांसुधी नवकारमंत्रने प्राप्त कर्यो नथी त्यांसुधी अनेक जन्मोमां एकठां करेला तेमनां शारीरिक अने मानसिक दुःखोनो नाश शी रीते थाय ? / " // 7 // 15 - "त्रण लोकमां नवकारथी सारभूत (प्रधान) अन्य कोई मंत्र नथी, तेथी प्रतिदिन परमभक्तिथी तेनुं ध्यान करवू जोईए / " // 8 // 'एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो'-ए चूलिकानो प्रथम उद्देशो छ / ते केवो छ ? 'मंग' एटले निर्वाणसुख (मोक्षसुख )ने सिद्ध करवामां समर्थ सम्यद्गर्शन वगेरे अरिहंतोए प्ररूपेल अहिंसालक्षण धर्मने जे मने आणी आपे ते मंगल 1, अथवा मने संसारथी गाळे 20 अर्थात् तारे ते मंगल 2, बद्ध, स्पृष्ट, निधत्त अने निकाचित एवा आठ प्रकारना मारा कर्मना राशिने जे गाळे अर्थात् शमावे ते मंगल 3 / 1 नवकारलहुकुलकं गा० 1 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 438 / 2 पंचनमुक्कारफलं गा० 26 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 383 / तथा नवकारलहुकुलकं गा०८। जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ.४३९ / 12