SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमस्कार स्वाध्याय। विभाग] तथा 'नमो लोए सव्वसाहूणं' // अञ्चंतकट्ठ उग्गतरघोरतवचरणाइअअणेगवयनियमोववासानाणाभिम्गहविसेससंजमपरिपालणेण सम्मं परीसहोवसग्गाहियासणेणं सव्वदुक्खविमोक्रवं मोक्खं साहयंति साधवो 5 / ___ अत्रापि विशेषार्थः / साधयन्ति मोक्षसाधकज्ञानादिशक्तीरिति साधवः, साम्यं वा सर्वभूतेषु ध्यायन्ति निरुक्तिवशात् साधवः / यदाह “निव्वाणसाहए जोए जम्हा साहंति साहणो / समा हि सव्वभूएसु तम्हा ते भावसाहुणो // " साहायकं वा संयमकारिणां धारयन्तीति साधवः निरुक्तेरेव / सर्वे च ते सामायिकादिविशेषणाः प्रमत्तसंयतादयः पुलाकादयो जिनकल्पिक-प्रतिमाकल्पिक-यथालंदकल्पिक-परिहारविशुद्धिकल्पिक-स्थविरकल्पिक-स्थितकल्पिकाऽस्थितकल्पिकभेदाः प्रत्येकबुद्ध-स्वयंबुद्ध-बुद्धबोधितभेदाः भारतादिमेदाः सुषमदुःष-10 मादिविशेषान्ता वा सांधवश्च सर्वसाधवः / सर्वग्रहणं च सर्वेषां गुणवतामविशेषेणनमनीयताप्रतिपादनार्थ, यदाहनमो लोए सव्वसाहूणं - "तथा अत्यंत कठिन उग्रतर अने घोर तपश्चर्या वगेरे अनेक व्रत, नियम, उपवास, अनेक प्रकारना अभिप्रहविशेष तथा संयमनुं परिपालन करीने अने सारी रीते परीषह तेमज उपसर्गोने 15 सहन करीने जेओ सर्व दुःखमांथी मुक्तिने साधे छे ते 'साधु' कहेवाय छे / " (महानिशीथसूत्र) . अहीं विशेषार्थ आ प्रमाणे छे:- 'मोक्षसाधक ज्ञान वगेरे शक्तिओने जे साधे छे ते साधु कहेबाय छे / अथवा सर्व प्राणीओ प्रति समभाव- जे ध्यान करे छे ते 'साधु' कहेवाय छ / . (आवश्यकनियुक्तिमां ) कयुं छे के ___“निर्वाणना साधक योगोनी साधुओ साधना करे छे तेमज सर्व जीवो उपर समभावने 20 धारण करे छे तेथी ते 'भावसाधु' कहेवाय छ / " अथवा संयमर्नु पालन करनारा आत्माओने सहाय करे छे तेथी साधु कहेवाय छे / 'सर्व साधु' शब्दथी सामायिकादि विशेषणोथी युक्त, प्रमत्त वगेरे, पुलाक वगेरे जिनकल्पिक, प्रतिमाकल्पिक, यथालंदकल्पिक, परिहारविशुद्धिकल्पिक, स्थविरकल्पिक, स्थितकल्पिक, अस्थितकल्पिक, प्रत्येकबुद्ध, स्वयंबुद्ध, बुद्धबोधित, भरत वगेरे क्षेत्रना तेमज सुषम, दुःषमा वगेरे काळना 25 साधुओ-एम सर्व प्रकारना साधुओ समजवा / सर्व गुणवान पुरुषो भेदभाव विना नमस्कार करवा लायक छे ते जणाववा माटे 'सर्व' शब्दनो अहीं प्रयोग करवामां आव्यो छे / कयुं छे के 1 आवश्यकनियुक्ति गा. 1010 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 155 2 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 44, पं. 13-16. 3 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 6-7
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy