________________ चैत्यवंदनमहाभाष्ये नमस्कारसूत्रस्य उल्लेखः / [प्राकृत 'उ' त्ति उवओगकरणे, 'झ' ति य झाणस्स होइ निद्देसो / एएण हुँति 'उज्झा' एसो अन्नो वि पज्जाओ // ' तथा उप-समीपमागत्याधीयते 'इङ्' अध्ययने इति वचनात् पठ्यते, इण गताविति वचनाद्वा 'अधि' आधिक्येन गम्यते, इक् स्मरणे इति वचनाद्वा स्मर्यते सूत्रतो जिनवचनं येभ्यः ते उपाध्यायाः, 5 यदाह-बारसंगो जिणक्खाओ० गाथा / अथवा उपाधानमुपाधिः-सन्निधिः तेन उपाधिना उपाधौ वा आयो लाभः श्रुतस्य येषाम् / उपाधीनां वा विशेषणानां प्रक्रमाच्छोभनानामायो लाभो येभ्यः / अथवा उपाधिरेव संनिधिरेख आयम्-इष्टफलं दैवजनितत्वेन आयानामिष्टफलानां समूहस्तदेकहेतुत्वाद् येषाम् / __ अथवाऽऽधीनां मनःपीडानामायो लाभ आध्यायः, अधियां वा, नञः कुत्सार्थत्वात् कुबुद्धीना10 मायोऽध्यायः, 'ध्यै चिंतायाम्' इत्यस्य धातोः प्रयोगान्नञः कुत्सार्थत्वादेव च दुर्ध्यानं वा अध्यायः, उपहत आध्यायो अध्यायो वा यैस्ते उपाध्यायाः, तेभ्यो नमः इत्यादि चर्चः प्राग्वत् / नमस्यता चैषां सुसम्प्रदायायातजिनवचनाऽध्यापनतो विनयविनयनेन भव्यानामुपकारित्वात्॥ " 'उ' एटले उपयोग करवो, अने 'ज्झा' एटले ध्यान कवु। आथी ‘उज्झा' अर्थात् उपयोगपूर्वक ध्यान करनार एवो एनो बीजो पर्याय-नाम छे / " 15 अथवा 'उपाध्याय' शब्दना बीजा अर्थो नीचे मुजब छे "उपाध्याय" शब्दमां त्रण शब्दो छः उप+अधि+इ / आमां 'उप' एटले समीप, 'अधि' एटले आधिक्य / अने 'इ' धातुना त्रण अर्थ थाय छः अध्ययन करवू, जवु (जाणवू) अने स्मरण करवू / एटलेके जेमनी पासे जईने सूत्रथी जिनवचन- अध्ययन करवामां आवे छे, अधिकपणे ज्ञान मेळववामां आवे छे तथा स्मरण करवामां आवे छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छ। (आवश्यक20 नियुक्तिमां) कयुं छे के-"जिनेश्वरोए प्ररूपेल द्वादशांगीने गणधर आदि पुरुषो स्वाध्याय कहे छ / एवा स्वाध्यायनो शिष्योने (सूत्रथी) उपदेश आपे छे तेथी ते 'भाव उपाध्याय' कहेवाय छ / " ___ अथवा ( 'उपाध्याय' शब्दाना बीजा पण अनेक अर्थो नीकळे छे, जेमके-) 'उपाधि' एटले 'संनिधि' / जेमनी संनिधिथी अथवा जेमना सांनिध्यमा रहेवाथी श्रुतज्ञाननो 'आय' एटले 'लाम' थाय अथवा जेमनी पासेथी 'उपाधि' एटले सुंदर विशेषणोनो लाभ थाय तेमने 'उपाध्याय' 25 कहेवामां आवे छे / अथवा जेमनी उपाधि एटले जेमनु सांनिध्य 'आय' एटले इष्ट फळोना समूहमा कारणभूत छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छे / अथवा बीजो पण अर्थ छ / 'आधि' एटले 'मननी पीडा' तेनो 'आय' एटले 'लाभ' ते 'आध्याय' / अथवा 'अधि' एटले 'कुबुद्धि' नो 'आय' एटले 'लाभ' ते 'अध्याय'। अथवा अध्याय एटले 'दुर्ध्यान' / आ 'आध्याय' तथा 'अध्याय' ने जेमणे उपहत कर्या छे अथवा हणी 30 नाख्या छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छे / आवा उपाध्याय भगवंतोने मारो नमस्कार हो / वगेरे चर्चा पहेलांनी जेम समजी लेवी। सुसंप्रदायथी (प्रतिष्ठित परंपराथी) चाल्या आवता जिनवचन- भव्य जीवोने अध्यापना करवा द्वारा विनीत बनावीने उपकार करता होवाथी उपाध्याय भगवंतो नमस्कारने योग्य छ। (भगवतीसूत्र) 1 आवश्यकनियुक्ति गा० 1002 / जुओ-प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 154 / 2 आवश्यकनियुक्ति गा० 1001, जे उपर आवी गई छ / 3 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 5-6