________________ 8 . विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। __तथा 'नमो उवझायाणं // सुसंवुडासवदारे मणोवइकायजोगत्तयउवउत्ते विहिणा सरवंजणमत्तबिंदुपयक्खरविसुद्ध दुवालसंग सुयनाणऽज्झयणज्झावणेणं परमप्पणो य मुखोवायं झायंतित्ति उवज्झाया 1 // अत्र गाथा बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहेहिं / तं उवइसति जम्हा, उवज्झाया तेण वुच्चंति // थिरपरिचियमणंतगमपज्जवत्थेहि वा दुवालसंग सुयनाणं चिंतंति अणुसरंति एगग्गमाणसा झायंतित्ति वा उवज्झाया 3, एवमेए अणेगहा पन्नविजंति अनेकविधत्वम् त्विदम्___ 'उ' त्ति उवओगकरणे, 'व' ति य पावपरिवज्जणे होइ / 'झ' त्ति य झाणस्स कए, 'उ' त्ति य ओसकणा कम्मे // त्ति निरुक्तिवशादुपाध्यायाः / नमो उवज्झायाणं 10 - "जेमणे आश्रवनां द्वारो बंध करेलां छे, मन-वचन अने काया ए त्रणेना योगोमां उपयोगवाळा, विधिपूर्वक स्वर, व्यंजन, मात्रा, बिंदु, पद अने अक्षरोथी विशुद्ध द्वादशांत जे श्रुतज्ञान तेनुं अध्ययन अने अध्यापन करवा वडे पोताना तथा पारकाना मोक्षना उपाय- जेओ ध्यान करे छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छ / " ( महानिशीथसूत्र ) . .. आ विशे (आवश्यकनियुक्तिमा )गाथा छे के-"जिनेश्वरोए प्ररूपेल द्वादशांगीने गणधर 15 आदि पुरुषो स्वाध्याय कहे छ। एवा स्वाध्यायनो शिष्योने ( सूत्रथी )उपदेश आपे छे तेथी ते भाव उपाध्याय' कहेवाय छे।" "चिरपरिचित द्वादशांत श्रुतज्ञानने अनंतगम अने पर्यायार्थ वडे जेओ चिंतवे छे, अनुस्मरण करे छे अने एकाग्र मनवाळा थईने तेनुं ध्यान धरे छे ते 'उपाध्याय' कहेवाय छे / आ प्रमाणे 'उपाध्याय' शब्दनी अनेक प्रकारे व्याख्या करवामां आवे छे / " ( महानिशीथसूत्र ) 20 व्याख्याना अनेक प्रकारो आ प्रमाणे छे: " 'उ' एटले उपयोग करवो, 'व' एटले पापनुं वर्जन, 'झ' एटले ध्यान करवू अने 'उ' एटले कर्मो दूर करवां-अर्थात् उपयोगपूर्वक पापने छोडतां ध्यान आरूढ थईने कर्मोने दूर करे ते 'उपाध्याय' कहेवाय / ( आ अक्षरार्थ छे, अक्षरार्थना अभावे पदार्थना अभावनो प्रसंग आवे / पद ए समुदायरूप होवाथी अहीं अक्षरार्थ समजवो।)” आ प्रमाणे नियुक्तिथी 'उपाध्याय' शब्द 25 बने छ। 1 आवश्यकनियुक्ति गा. 1001 / जुओ-प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 154 / 2 आवश्यकनियुक्ति गा० 1003 / जुओ-प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 154 / 3 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 43, पं. 19-22 / 4 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 43, पं. 22-24,