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________________ चैत्यवदनमहाभाष्ये नमस्कारसूत्रस्य उल्लेखः। . [प्राकृत "सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो गच्छस्स मेढिभूओ य / गणतत्तिविप्पमुक्को अत्थं भासेइ आयरियो // " अथवा, आचारो ज्ञानाचारादिभिः पञ्चधा, आ- मर्यादया वा मासकल्पादिकरणरूपया चारोविहारः आचारः तत्र साधवः स्वयंकरणादन्यप्रदर्शनाच्चेत्याचायोः, आह च-... "पंचविहं आयारं, आयरमाणा तहा पयासंता / आयारं दंसंता, आयरिया तेण वुच्चंति // " तथा “पडिमापडिवन्नाणं एगाहं पंच हंति हालंदे। जिणसुद्धाणं मासो निक्कारणओ य थेराणं // मासं व चउम्मासं परं पमाणं तहेगखित्तम्मि / बीयं तइयं च तहिं मासं वासं व न वसिज्जा // " अथवा आईषत् अपरिपूर्णा इत्यर्थः चारा हेरिका ये ते आचाराः चरकल्पा इत्यर्थः / युक्तायुक्तविभागनिरूपणनिपुणाः मुनयः तेषु साधवो यथावच्छात्रोपदेशकत्वात् इति आचार्यास्तेभ्यो नमः, नमस्करणीयता चैतेषां आचाराद्युपदेशकतयोपकारित्वात् / / 15. "सूत्र अने अर्थने जाणनारा, लक्षणथी युक्त, गच्छना आलंबनभूत अने गच्छनी चिंताथी रहित एवा आचार्य अर्थनो उपदेश आपे छ / " अथवा ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार-ए पांच प्रकारना आचारनो आचार ते आचार कहेवाय छे। अथवा 'मासकल्प' वगेरे मर्यादाथी जे विहार करवो ते पण आचार कहेवाय छे / आ बन्ने प्रकारना आचारने जेओ पोते सुंदर रीते पाळे छे अने 20 बीजाओने पण दर्शावे छे ते आचार्य कहेवाय छे / कयुं छे के- .. "पांच प्रकारना आचारने आचरनारा तथा उपदेश आफ्नारा तेमज आचारने बतावनारा होवाथी ते आचार्य कहेवाय छे / " . तथा कयुं छे के - “भिक्षु प्रतिमा जेमणे स्वीकारी छे एवा साधु एक क्षेत्रमा एक दिवस रही शके, यथालंदक मुनि एक क्षेत्रमा पांच दिवस रही शके, जिनकल्पीओ अने परिहारविशु25 द्धिक एक महिनो रही शके, स्थविरकल्पीओ निष्कारण एक महिनो अथवा तो चार मास एक क्षेत्रमा रही शके, परंतु शेषकाळमां एक मासथी विशेष अथवा चोमासा बाद एक मासथी विशेष बीजो के त्रीजो मास रही शके नहीं।" . .. ___ अथवा आ+चार एटले योग्य अने अयोग्यनो विभाग करवामां निपुण एवा साधुओने शास्त्रोनो यथावत् उपदेश आपे छे तेथी पण 'आचार्य' कहेवाय छे / तेमने मारो नमस्कार हो / 30 आचार वगेरेना उपदेशक होवाथी उपकारीपणाने लीधे आचार्यो नमस्करणीय छ / १आवश्यकनियुक्ति गा. 994 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 152 / / 2 सामान्य रीते साधुओ चातुर्मास सिवायना समयमा एक ज ठेकाणे एक महिना सुधी रही शके ते नियमने 'मासकल्प' कहेवामां आवे छे। 3 पंचविध आचार ते-१ ज्ञानाचार 2 दर्शनाचार 3 चारित्राचार. 4 तप आचार अने 5 वीर्याचार-आ आचारोने पाळनारा, अनुष्ठानथी आचारण करनारा, व्याख्यानथी उपदेश देता, तेमज पडिलेहणा चगेरे आचारने बतावता होवाथी आचार्य कहेवाय छ /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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