________________ विभाग] . . नमस्कार स्वाध्याय / अत्र गाथा " नाणाई छत्तीसं तस्सायरणा पयासणाओ अ / जे ते भावायरिया भावायारोवउत्ता य॥" परमप्पणो अ हियमायरंति वा आयरिया 2, सञ्वसत्ते सीसगणाण वा हियमायरंति आयरिया 3, “जिणपहअपंडियाणं पाणहराणं पि पहरमाणाणं / न करती पावाइं पावस्स फलं वियाणंता // " पाणपरिच्चाएऽवि पुढवाईणं समारंभ. नायरंति नारभंति नाणुजाणंति वा आयरिया 4, सुट्ठ अवरुद्धे वि न कस्सइ मणसावि पावमायरंति त्ति वा आयरिया 5, एवमेए नाम-ट्ठवणाईहिं अणेगहा पन्नविजंति इत्यादि.६ / ____ तत्र प्राग्वद् अर्थविशेषः, आ-मर्यादया तद्विषयविनयरूपया चर्यते- सेव्यते जिनशासनार्थोप-10 देशकतया तदाकाटिभिरित्याचार्याः, उक्तं च (आव. नि. नी 995 मी) गाथामां कहुं छे के- "ज्ञान वगेरे छत्रीश वस्तुओर्नु आचारण करता होवाथी तेमज उपदेश देता होवाथी जे भाव आचारथी युक्त होय ते 'भावाचार्य' कोवाय छे।" ____ "अथवा पारकाना अने पोताना हितने जे आचरे छे ते 'आचार्य' कहेवाय छे / अथवा 15 सर्व जीवो अने शिष्यसमुदायतुं हित आचरे ते आचार्य" (महानिशीथसूत्र) (कयुं छे के-) "जिनमार्गने नहि जाणनारा, बीजानुं प्राणहरण करनारा अने प्रहार करनारा जीवो प्रत्ये पापना फळने जाणनारा ( आचार्य ) पापाचरण करता नथी।" “प्राण जाय तो पण पृथ्वीकायिक आदि जीवोनो जेओ आरंभ-समारंभ करता नथी अने तेनी अनुज्ञा पण आपता नथी ते आचार्य / कोईए खूब अपराध को होय तो पण तेना उपर 20 मनथीए जेओ पापी आचरण करता नथी ते 'आचार्य' कहेवाय छे / आ प्रमाणे नाम-स्थापना वगेरे अनेक प्रकारे आचार्यनी प्ररूपणा करवामां आवे छे।” (महानिशीथसूत्र) पहेलांनी जेम अहीं अर्थविशेष आ प्रमाणे छ:-"जिनशासनना अर्थोना उपदेशक होवाने लीचे तेना अर्थी आत्माओ विनयरूपी मर्यादाथी जेमनी सेवा करे छे ते 'आचार्य' कहेवाय छ / कधु छ के-.. 25 1 आवश्यकनियुक्ति गा. 995 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 153 ['णमोकारविजती'मां छपायेल आ गाथामां 'नाणाई छत्तीस' ने बदले 'आयारो नाणाई' पाठ छे. ] . 2 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 43, पं. 12-13 / - 3 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 43, पं. 13-16 / 4 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 4-5 / 11