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________________ विमाग नमस्कार स्वाध्याय / पालेति जहा गावो, गोवा अहि (इह ? ) सावयाइदुग्गेहिं / पउरतणपाणि आणि य, वणाणि पावेंति तह चेव // जीवनिकाया गावो, जं ते पालंति ते महागोवा / मरणाइ भयाउ तहा निव्वाणसुहं (वणं ?) च पावंति // तो उवगारित्तणओ, नमोऽरिहा भवियजीवलोगस्स / सव्वस्सेह जिणिंदा, लोगुत्तमभावओ तह य // " उपदेशित्वादेव च प्रथममर्हतां नमस्कारः, आह च--- " अरिहंतुवएसेणं, सिद्धा नजंति तेण अरिहाई / " 2 अथवा अरिहंताणं ति पाठः, तत्राह-निम्महिय-निहय-निद्दलिय-पेल्लिय-निट्ठविअ-अभिभूअसुदुज्जयासेसअट्ठपयारकम्मरिउत्ताओ वा अरिहंता / ' अरुहंता वा पाठः, असेसकम्मक्खएणं निद्दड्वभवंकुरत्ताओ न पुणेह रुहंति-जम्मति उववज्जंति वा अरुहंता, एवमेए अणेगहा पन्नविजंति परूविजंति आघविजंति पट्टविजंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। जेम गोवालियो गायोनुं सर्प, जंगली पशुओ वगेरेना कष्टोथी रक्षण करे छे अने घास 10 तेमज पाणीथी भरेलां जंगलमां लई जाय छे तेम जीवसमूहरूप गायो- मरण वगेरे भयोथी जिनेश्वरो रक्षण करे छे अने तेमने निर्वाणस्वरूप वनमा लई जाय छे / ए रीते जिनेश्वरो सर्व भव्य जीवलोकनो उपकार करता होवाथी लोकोत्तम पुरुषनी भावनाथी नमस्कारने योग्य छे।” ____ उपदेशक होवाने लीधे प्रथम अरिहंतने नमस्कार करवामां आवे छे ( आवश्यकनियुक्ति गा. 1021 ) मां कह्यु छ के–'अरिहंतना उपदेशथी ज सिद्धोनुं ज्ञान थाय छे तेथी पंचपरमेष्ठिमां 15 अरिहंतो आदि (प्रथम) छे / " अथवा 'अरिहंताणं' एवो पण पाठ छे / ते संबंधमां ( महानिशीथसूत्रमा ) कहुं छे के-"दुःखे करीने समजी शकाय एवा आठ प्रकारना कर्मरूपी समग्र शत्रुओने मथी नाख्या होवाथी, हणी नाख्या होवाथी, दळी नाख्या होवाथी, पीली नाख्या होवाथी, खलास करी नाख्या होवाथी अने पराजित कर्या होवाथी तेओ अरिहंत पण कहेवाय छ / " ___ 'अरुहंताणं' एवो पाठ पण छे। सर्व कर्मोनो क्षय थई जवाथी संसारना अंकुराओ बळी गया होवाने लीधे जेओ फरीवार ऊगता नथी अर्थात् जन्म लेता नथी, उत्पन्न थता नथी तेओ 'अरुहंत' पण कहेवाय छे / आ प्रमाणे अनेक रीते तेओनी प्रज्ञापना, प्ररूपणा, उपदेश, प्रस्थापना, निदर्शन तथा उपदर्शन कराववामां आवे छे। (अर्थात् अनेकरीते तेमनी व्याख्या करवामां आवे छे / ) 20 25 1 आवश्यकनियुक्ति पूर्व भाग गा० 904 थी 917 / जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 127 थी 130 / 2 आवश्यकनियुक्ति गा० 1021 / आखी गाथा माटे जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ० 159 / 3 जुओ प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 42, पं. 17-18 /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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