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________________ 624 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 पूर्वापरस्वभावपरिहारावाप्तिलक्षणपरिणामवान् शब्द बुद्धि प्रदीपादिकोऽर्थः, सत्त्वात् कृतकत्वाद्वा, यावान् कश्चित् भावस्वभावः स सर्वः तादृशभावस्वभावविवर्त्तमन्तरेण न सम्भवति, तथाहि न तावत् क्षणिकस्य निरन्वयविनाशिनः सत्त्वसम्भवोऽस्ति स्वाकारानुकारि ज्ञानमन्यद्वा कार्यान्तरमप्राप्याऽऽत्मानं संहरतः सकलशक्तिविरहितस्य व्योमकुसुमादेरिव सत्त्वानुपपत्तेः / तादृशस्य न हि कार्यकालप्राप्तिः, क्षणभंगभंगप्रसक्तेः / नापि फलसमयमात्मानमप्रापयतस्तज्जननसामर्थ्य चिरतरविनष्टस्येव सम्भवति / न च समनन्तरभाविनः कार्यस्योत्पादने कारणं स्वसत्ताकाल एव सामर्थ्यमाप्नोति, कार्यकाले तस्य स्वभाव (वा) विशेषात् ततः प्रागपि कार्योत्पत्तिप्रसंगात् / तस्मिन् सत्यभवन्नसति स्वयमेव भवन्नयं भावः तत्कार्यव्यपदेशमपि न लभते, न हि समर्थे कारणे प्रादुर्भावमप्राप्नुवत् कार्यम इतरद्वा कारणम , अतिप्रसंगात / न च समनन्तरभावविशेषमात्रेण तत्कार्यत्वं युक्तम , समनन्तरप्रभवत्वस्यवाऽसम्भवात-इतरेतराश्रयप्रसक्तः इति प्रतिपादितत्वात / का अभाव प्रसक्त होगा / अन्तिम क्षण में सत्त्व का अभाव प्रसक्त होने पर उपान्त्यादिक्षण परम्परा में भी असत्त्व प्रसक्त होगा, इस प्रकार तो जिस क्षण में आपको प्रदीप का सत्त्व इष्ट है उस क्षण में भी उसका असत्त्व प्रसक्त होगा / फलत: दृष्टान्तभूत प्रदीपादि और पक्षभूत बुद्धि आदि धर्मी का ही अभाव हो जायेगा, तो अनुमान की प्रवृत्ति भी कैसे होगी ? ! यदि आपको इस दोष से बचना है अर्थात् शब्द, बुद्धि और प्रदीपादि का विवक्षित क्षण में सत्त्व मानना है तो फिर उनका अत्यन्त विच्छेद मत मानीये, यदि मानेंगे तो विवक्षित क्षण में भी असत्त्व की आपत्ति खडी है। सारांश, प्रदीपादि सब अत्यन्तविच्छेदरहित ही हैं और उनमें ही सन्तानत्व हेतु रहता है तो वह विरुद्ध क्यों नहीं होगा? . [सन्तानत्व हेतु में पक्षबाधा और कालात्ययापदिष्टता] , विरुद्ध दोष की तरह प्रतिपक्षी के अनुमान में अनुमानबाधितपक्षरूप दोष भी है क्योंकि उक्त साध्य से विपरीत अर्थ का साधक अन्य अनुमान मौजूद है। अथवा अनुमानबाध के बदले हेतु में कालात्ययापदिष्टता दोष भी कहा जा सकता है / अन्य अनुमान से पक्षबाधा कैसे है अथवा पक्ष के अनुमानबाधित होने का निर्देश करने के बाद हेतु प्रयोग किये जाने के कारण हेतु में कालात्ययापदिष्ट दोष कैसे लगता है यह तो बार बार कह चुके हैं इसलिये फिर से नहीं कहते हैं / यदि यह पूछा जाय कि हमारी सन्तान के अत्यन्तोच्छेद की प्रतिज्ञा में बाधक बनने वाला वह कौन सा अनुमान है जिस से पक्षबाधादि उक्त दोष होता है ? तो उत्तर में यह अनुमान है कि "शब्द-बुद्धि और प्रदीपादि पदार्थ पूर्वस्वभावपरिहार-उत्तरस्वभावधारणस्वरूप परिणामवाले होते हैं क्योंकि वे सत् हैं अथवा कृतक हैं / जो कुछ भावस्वभाव पदार्थ हैं उन सभी का तथाविधभावस्वभावविवर्त ( यानो पूर्वस्वभावत्याग-उत्तरस्वभावधारणरूप परिणामभाव ) के विना सम्भव नहीं होता।" जैसे देखिये [शब्दादि में परिणामवाद की सिद्धि ] [ शब्द में परिणामित्व की सिद्धि के लिये कथित अनुमान के बाद जो व्याप्ति कही गयोउसका अब विस्तार से समर्थन किया जा रहा है ] निरन्वयविनाशी क्षणिक वस्तु का सत्त्व सम्भवित नहीं है / कारण, अपने आकार से तुल्य ज्ञान को या अन्य किसी कार्य को उत्पन्न किये विना ही अपनी
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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