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________________ प्रथमखण्ड-का० १-अपौरुषेयविमर्शः 131 किंच, प्रमाणपंचकाभावः किं ज्ञातोऽभावप्रमाणजनकः ? उताज्ञातः ? यदि ज्ञातः तदा न तस्यापरप्रमाणपंचकाभावाद्ज्ञप्तिः, अनवस्थाप्रसङ्गात् / नाऽपि प्रमेयाभावात् , इतरेतराश्रयदोषात् / प्रथाज्ञातस्तज्जनकः, न, समयानभिज्ञस्यापि तज्जनकत्वप्रसङ्गात् , न चाज्ञातः प्रमाणपंचकाभावोऽभावज्ञानजनकः, 'कृतयत्नस्यैव प्रमाणपंचकाभावोऽभावज्ञापकः' इत्यभिधानात् / न चेन्द्रियादेरिव अज्ञातस्यापि प्रभाणपंचकाभावस्याभावज्ञानजनकत्वम् , अभावस्य सर्वशक्तिरहितस्य जनकत्वविरोधात् / अविरोधे वा भावेऽपि 'अभाव' इति नाम कृतं स्यात् / उत्तरपक्षीः- इस प्रकार के अभाव प्रमाण का कौन उपस्थापक है यह कहो ! अपौरुषेयवादी:-प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण का अभाव / ये कि आत्मसंबंधी प्रमाणपंचकाभाव उसका उत्थापक है ? या सर्वसंबंधी ? तात्पर्य, प्रमाणपंचक की उपलब्धि केवल आपको ही नहीं है ? या सभी को नहीं है ? 'सभी को नहीं है' यह बात तो असिद्ध है / 'केवल आपको नहीं है' इतने से वेद में पुरुषाभाव सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि इसमें अनैकान्तिक दोष है, अन्य बौद्धादि आगम के प्रणेता पुरुष के विषय में भी आपको प्रमाणपंचक की उपलब्धि नहीं है किंतु आप उसे अपौरुषेय नहीं मानते हैं। ___ अपौरुषेयवादी:--अन्य बौद्धादिवादीयों उनके आगमों को तो पुरुषप्रणीत मानते हैं इसलिये वहाँ प्रमाणपंचकाभाव कोई अभावप्रमाण का प्रयोजक नहीं होगा। - उत्तरपक्षीः--अन्यवादियों का मन्तव्य आपके लिये प्रमाणभूत न होने से आप ऐसा नहीं कह सकते / यदि आप अन्यवादी के मन्तव्य को प्रमाण मानते हैं तब तो वेद में भी अभावप्रमाण प्रवृत्ति अशक्य है क्योंकि अन्यवादी तो वेद के भी कर्ता पुरुष को मानते हैं। इस तथ्य की ओर आंख मुद कर भी आप वेद में अभावप्रमाण की प्रवृत्ति मानेंगे तो अन्य बौद्धादि आगम में भी अभाव प्रमाण की प्रवृत्ति अनिवार्य होगी क्योंकि दोनों के आगम में कोई विशेष अन्तर नहीं है। ___ अपौरुषेयवादी:-- वेद पुरुषरचित होने की अन्यवादीयों की मान्यता मिथ्या है इसलिये अभावप्रमाण की प्रवृत्ति निर्बाध होगी। उत्तरपक्षीः--तब तो अन्यवादीयों की उनके आगम में पुरुषप्रणीतत्व की मान्यता में भी मिथ्यात्व का प्रसंग होगा और तब उनके आगम को भी अपौरुषेय मानने की आपत्ति होगी। [प्रमाणपंचकाभाव के संभवित विकल्पों का निराकरण ] ... यह भी विचारणीय है कि - (1) प्रमाणपंचक का अभाव प्रगट रह कर अभावप्रमाण का उपस्थापक होगा? या (2) गुप्त रह कर ? (1) यदि 'प्रगट रह कर' ऐसा कहेंगे तो उसका ज्ञान किससे होगा? अन्य प्रमाणपंचकाभाव से उसका ज्ञान नहीं मान सकेंगे क्योंकि उस अन्य प्रमाणपंचकाभाव को भी प्रगट होकर उसके ज्ञापक मानने पर अनवस्था चलती रहेगी। प्रमेय के अभाव से प्रमाणपंचकाभाव की ज्ञप्ति नहीं मानी जा सकेगी क्योंकि, प्रमेयाभाव का ज्ञान प्रमाणपंचकाभाव से और प्रमाणपंचकाभाव का ज्ञान प्रमेयाभाव से इस तरह अन्योन्याश्रय दोष लगेगा। (2) गुप्त रहकर प्रमाणपंचकाभाव अभावप्रमाण का उपस्थापक नहीं हो सकता क्योंकि [श्लोकवात्तिक 5-38 में] आपने ही पहले यह कहा है कि 'जब प्रयत्न करने पर भी पांच में से किसी
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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