________________ 130 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड-१ अभावप्रमाणग्राह्यत्वाभ्युपगमेऽपि वक्तव्यम्-किमभावप्रमाणं ज्ञानविनिर्मुक्तात्मलक्षणम् ? उत अन्यज्ञानस्वरूपम् ? प्रथमपक्षेऽपि कि सर्वथा ज्ञानविनिमुक्तात्मस्वरूपम् ? आहोस्विद् निषेध्यविषयप्रमाणपंचकविनिर्मुक्तात्मलक्षणम् ? इति / प्रथमपक्षे नाऽभावपरिच्छेदकत्वम् , परिच्छेदस्य ज्ञानधर्मत्वात , सर्वथा ज्ञानविनिर्मुक्तात्मनि च तदभावात् / निषेध्यविषयप्रमाणपंचकविनिर्मुक्तास्नोऽपि नाभावव्यवस्थापकत्वम , आगमान्तरेऽपि तस्य सद्धावेन व्यभिचारात् / तदन्यज्ञानमपि यदि तदन्यसत्ताविषयं स्यात् नाभावप्रमाणं स्यात् , तस्य सद्विषयत्वविरोधात् / __ 'पौरुषेयत्वादन्यस्तदभावस्तद्विषयज्ञानं तदन्यज्ञानम् अभावप्रमाणमिति चेत् ? अत्रापि वक्तव्यम्-किमस्योत्थापकम् ? प्रमाणपंचकाभावश्चेत् ? नन्वत्रापि वक्तव्यम्-किमात्मसंबन्धी, सर्वसम्बन्धी वा प्रमाणपंचकाभावस्तदुत्थापकः ? न सर्वसम्बन्धी, तस्याऽसिद्धत्वात् / नात्मसंबन्धी, तस्यागमान्तरेऽपि सद्धावेन व्यभिचारित्वात / 'आगमान्तरे परेण पुरुषसद्भावाभ्युपर भावो नाभावप्रमाणसमुत्थापक' इति चेत् ? न , पराभ्युपगमस्य भवतोऽप्रमणत्वात् / प्रमाणत्वे. वा वेदेऽपि नाभावप्रमाणप्रवृत्तिः, परेण तत्रापि कर्त पुरुषसद्धावाभ्यपगमात,प्रवृत्ती वाऽऽगमान्तरेऽपि स्यात्, अविशेषात् / न च वेदे पुरुषाभ्युपगमः परस्य मिथ्या, अन्यत्रापि तन्मिथ्यात्वप्रसवतेः / [ पुरुषाभावग्राहक अभावप्रमाण के संभक्ति विकल्पों का निराकरण ] [D] पुरुषाभाव को अभावप्रमाणग्राह्य मानने पर कहिये कि-[E] वह अभावप्रमाण ज्ञानशून्य आत्मपरिणाम रूप है ? या [P] अन्य वस्तु के ज्ञानरूप है ? [ श्लो० वा अभावपरिच्छेद के 11 वे श्लोकानुसार ये दो विकल्प किये गये हैं ] प्रथम पक्ष [E] में भी दो विकल्प हैं-[G] सर्वथा ज्ञानशून्य आत्मस्वभाव रूप है ? या [H] जिसका निषेध अभिप्रेत है उसके विषय में प्रत्यक्षादि पाँच प्रमाण ज्ञान से रहित आत्मस्वभावरूप है ? प्रथम विकल्प में [G] वैसा सर्वज्ञानशून्य आत्मपदार्थ अभाव का परिच्छेदक नहीं होगा क्योंकि परिच्छेद यह ज्ञान का धर्म है और सर्वथा ज्ञानशून्य आत्मा में परिच्छेद रूप ज्ञान धर्म का तो अभाव है। [H] निषेध्य विषयक प्रत्यक्षादि प्रमाणपंचकरहित आत्मा से भी अभाव की व्यवस्था दुर्घट है क्योंकि वेदभिन्न बौद्धादि आगम में भी कर्तृ पुरुष के विषय में प्रत्यक्षादि किसी प्रमाण की गति न होने से बौद्धागम में निषेध्य विषय प्रमाणपंचकरहित आत्मस्वरूप अभावप्रमाण है किन्तु अपौरुषेयत्व को वहाँ आप नहीं मानते हैं तो वैसा अभाव प्रमाण व्यभिचारी हुआ, अर्थात् वह वेदवाक्य में पुरुषाभाव का साधक न रहा / [F] अन्य वस्तु के ज्ञान रूप अभावप्रमाण यदि अन्य वस्तु की सत्ता को विषय करने वाला होगा तो वह अभाव प्रमाण ही नहीं होगा क्योंकि अभावप्रमाण का सविषयत्व के साथ तीव्र विरोध है / आशय यह है कि पुरुषाभाव के साधक अभावप्रमाण को किसी अन्य वस्तु के ज्ञान रूप माना जायेगा तो वह अन्य वस्तु जो भी होगी उसकी सत्ता का वह ग्राहक अवश्य होगा। ऐसा होने पर उसका अपना स्वरूप हो मिट जायगा / क्योंकि सत्ता के ग्राहक प्रमाण प्रत्यक्षादि पांच ही होते हैं-अभाव प्रमाण नहीं / [पौरुषेयत्वाभावविषयक ज्ञान अभावप्रमाणरूप घट नहीं सकता ] अपौरुषेयवादी:-अन्य ज्ञानरूप अभावप्रमाण का आशय यह है कि-पौरुषेयत्व से अन्य जो उसी का अभाव, उसको विषय करने वाला ज्ञान / तात्पर्य, पौरुषेयत्वाभावविषयक ज्ञान ही अभावप्रमाण है।