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________________ 132 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 'न तुच्छात्तदभावात् तदभावज्ञानम्' किन्तु प्रमाणपंचकरहितादात्मन' इति चेत् ? न, आगमान्तरेऽपि तथाभूतस्यात्मन सम्भवादभावज्ञानोत्पत्तिः स्यात्। 'प्रमेयाभावोऽपि तद्धतुस्तदभावाद नागमान्तरेऽभावज्ञान'-इति चेत? न, अभावाभावः प्रमेयसद्भावः, तस्य प्रत्यक्षाद्यन्यतमप्रमाणेनाsनिश्चये कथमभावाभावप्रतिपत्तिः ? 'अभावज्ञानाभावात् तत्प्रतिपत्तिर्न सदुपलम्भप्रमाणसद्भावाद्' इति चेत् ? न, अभावज्ञानस्य प्रमेयाभावकार्यत्वात् तदभावाद् नाभावावगतिः, कार्याभावस्य कारणाभावव्यभिचारात् / अप्रतिबद्धसामर्थ्यस्याभावप्रतीतावपि नेष्टसिद्धिः। प्रमाण की प्रमेय में प्रवृत्ति न हो तभी प्रमाणपंचक का अभाव उस प्रमेय के अभाव का ज्ञापक हो सकता है।'-प्रमाणपंचकाभाव को गुप्त मानने पर यह कथन विरुद्ध होगा। ___ यह नहीं कहा जा सकता कि-जैसे इन्द्रिय गुप्त रह कर भी ज्ञानजनक होती है उसी प्रकार प्रमाणपंचकाभाव भी गुप्त रह कर अभाव ज्ञान को उत्पन्न क्यों नहों करेगा ?- क्योंकि प्रमाणपंचकाभावभावात्मक न होने से, उसमें कोई भी शक्ति ही नहीं है। शक्तिहीन अभाव में कार्यजनकता विरोधग्रस्त है / विरोध न होने पर तो वह भाव ही होना चाहिये फिर 'अभाव' शब्द तो उसके लिये नाममात्र का रहेगा। [प्रमाणपंचकरहित आत्मा से पुरुषाभाव का ज्ञान अतिव्याप्त है ] अपौरुषेयवादीः-हम यह नहीं कहते कि तुच्छतापन्न प्रमाणपंचकाभाव से पुरुषाभाव का ज्ञान होता है, किन्तु हमारा कहना है कि प्रमाणपंचकाभावविशिष्ट आत्मा से अभावज्ञान होता है। उत्तरपक्षी:-अन्य बौद्धादि आगम में भी प्रमाणपंचकाभावविशिष्ट आत्मा का सद्भाव होने से, तथाभूत आत्मा से अन्य आगमों में भी पुरुषाभाव के ज्ञान की उत्पत्ति होगी तो क्या आप उनको अपौरुषेय मानेंगे? अपौरुषेयवादीः-केवल तथाभूत आत्मा ही अभावज्ञान का हेतु नहीं है किन्तु जिस प्रमेय का अभावज्ञान करना हो उस प्रमेय का अभाव भी उसमें हेतु है। अन्य आगमों में रचयिता पुरुषात्मक प्रमेयाभाव रूप हेतु का अभाव होने से अन्य आगमों में पुरुषाभाव का यानी अपौरुषेयता का ज्ञान दुःशक्य है। उत्तरपक्षी:-यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि प्रमेयाभावरूप हेतु के अभाव का अर्थ है प्रमेय का सद्भाव / बौद्धादि के आगम रचयिता पुरुषात्मक प्रमेय का सद्भाव प्रत्यक्षादि किसी भी प्रमाण से निर्णीत नहीं है, तो आपने अन्य आगम में रचयिता पूरुषात्मक प्रमेय के अभाव के अभा कैसे कर लिया? अपौरुषेयवादीः-हमने प्रमेयाभावाभाव यानी प्रमेय का ज्ञान सदुपलम्भक किसी प्रत्यक्षादि प्रमाण के सद्भाव से नहीं किया है किन्तु 'अन्य आगम में रचयिता पुरुष का अभाव है' इस प्रकार के ज्ञान के न होने से किया है। उत्तरपक्षी:-यह गलत बात है, अन्य आगम में प्रमेयाभाव का ज्ञान तो प्रमेयाभाव का कार्य है इसलिये प्रमेयाभाव के ज्ञान के अभाव से प्रमेयाभाव यानी प्रमेय का बोध हो नहीं सकता / क्योंकि प्रमेयाभाव के ज्ञान का अभाव यह कार्याभावरूप है और प्रमेयाभाव उस
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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