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________________ प्रथमखण्ड-का०१-ज्ञातृव्यापार० 103 न चेन्द्रियादिवदज्ञाताऽपि प्रमाणपंचकनिवृत्तिरभावज्ञानं जनयिष्यतीति शक्यमभिधातुम् / प्रमाणपंचकनिवृत्तेस्तुच्छरूपत्वात् / न च तुच्छरूपाया जनकत्वम् , भावरूपताप्रसक्तेः, एवलक्षणस्य भावत्वात् / तन्न सर्वसम्बन्धिनी प्रमाणपंचकनिवत्तिविपक्षे साधनाभावनिश्चयनिबन्धनम् / नाप्यात्मसम्बन्धिनी तन्निमित्तम् , यतः साऽपि किं तादात्विकी, अतीतानागतकालभवा वा ? न पूर्वा, तस्या गंगापुलिनरेणुपरिसंख्यानेनानकान्तिकत्वात् / नोत्तरा, तादात्विकस्यात्मनस्तन्निवृत्तेरसंभवाद् असिद्धत्वाच्च / तन्न आत्मसंबन्धिन्यपि प्रमाणपंचकनिवृत्तिस्तज्ज्ञानोत्पत्तिनिमित्तम् , तन्न अन्यवस्तुविज्ञानलक्षणमप्यभावाख्यं प्रमाणं व्यतिरेकनिश्चयनिमित्तम् / प्रथम कल्पना युक्त नहीं है, क्योंकि सर्वदेश काल में सभी प्रमाता को प्रकृत साधन के विषय में प्रत्यक्षादि प्रमाण पंचक की निवृत्ति है यह बात असिद्ध है। असिद्ध होने पर भी उस निवृत्ति से तथाभूत साधन के अभाव की कल्पना की जाय तो अनिष्ट प्रसंग होने वाला है क्योंकि ऐसी असिद्ध निवृत्ति तो सभी प्रमाता को सुलभ हो सकती है, उसकी प्रत्यासत्ति किसी भी प्रमाता से दूर नहीं है अतः सभी प्रमाता को तथाभूत साधन का अभावज्ञान हो जायगा। यह बात आपको भी मान्य नहा है / आशय यह है कि असिद्ध प्रमाण पंचक निवत्ति को अभाव ज्ञान का निमित्त आप भी नहीं मानते क्योंकि प्रयत्न करने पर भी प्रत्यक्षादि प्रमाणपंचक की प्रवृत्ति न हो तभी उसकी निवृत्ति को अभावसाधनरूप में बताया गया है / श्लोकवात्तिक में भी यही कहा गया है कि.. "उन देशों में बार बार जाने पर भी यदि पदार्थोपलब्धि नहीं होती तो उसका दूसरा कोई कारण न होने से वहाँ वह पदार्थ ही असत् समझा जाता है" / [ अज्ञात प्रमाणपंचकनिवृत्ति से अभावज्ञान अशक्य ] . असिद्ध प्रमाणपंचक निवृत्ति अभाव ज्ञान का निमित्त नहीं है-इसके विरुद्ध यह कहना भी शक्य नहीं है कि-'जैसे इन्द्रिय स्वयं अतीन्द्रिय होने के कारण ज्ञात न होकर भी ज्ञानजनक होती है इस प्रकार अज्ञात भी प्रमाणपंचकनिवृत्ति अभावज्ञान को उत्पन्न करेगी।'- क्योंकि इन्द्रिय तो भावात्मक वस्तु है, प्रमाणपंचकनिवृत्ति अभावात्मक तुच्छ है. तच्छ किसी का जनक नहीं हो सकता, अन्यथा वह तुच्छ न होकर भावरूप बन जायेगा क्योंकि उत्पादकतालक्षणयुक्त वस्तु भावात्मक होती है। इस का सार यह है कि विपक्ष में साधनाभाव का निश्चय प्रमाणपंचकनिवृत्तिमूलक नहीं है / एवं आत्मसंबन्धिप्रमाणपंचकनिवृत्तिमूलक भी वह नहीं हो सकती क्योंकि यहां दो विकल्प घट नहीं सकते / प्रथम विकल्प-जिस काल में साधनाभाव का निश्चय करना है, क्या उस काल में आत्मसंबंधी प्रमाणपंचकनिवृत्ति को उसका निमित्त मानेंगे या दूसरा विकल्प:-अतीत-अनागत काल संबंधी निवृत्ति को भी उसका निमित्त मानेंगे? प्रथम विकल्प की बात युक्त नहीं है क्योंकि यहां अनैकान्तिक दोष इस प्रकार लगता है कि गंगातटसंगी जितने रेणु कण हैं उनका संख्या परिमाण जानने के लिये तत्कालीन आत्मसंम्बन्धी प्रत्यक्षादि सभी प्रमाण वहां निष्फल है फिर भी वहाँ संख्या परिमाण का अभाव नहीं माना जाता। अतीतानागतकालीनवाला दूसरा विकल्प भी युक्त नहीं, क्योंकि तत्कालसंबन्धी आत्मा में अतीत अनागत काल संबन्धी प्रमाणपंचक की निवत्ति की संभावना ही नहीं हो सकती और वह सिद्ध भी कहाँ है ? इसलिये प्रमाणपंचक निवृत्ति साधनाभाव निश्चय का निमित्त नहीं बन सकती। सारे विचारों का निष्कर्ष यह है कि विज्ञानमन्यवस्तुनि०'
SR No.004337
Book TitleSammati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAbhaydevsuri
PublisherMotisha Lalbaug Jain Trust
Publication Year1984
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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