________________ 102 सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 व्यतिरेको निश्चितो भवति / साधनाभावनियतसाध्याभावस्य सर्वोपसंहारेण निश्चये व्यतिरेको निश्चितो भवति, अन्यथा यत्रैव साध्याभावे साधनाभावो न भवति तत्रैव साधनसद्भावेऽपि न साध्यमिति न साधनं साध्यनियतं स्यादिति व्यतिरेकनिश्चयनिमित्तो न हेतोः साध्यनियमनिश्चयः स्यात् / तन्न द्वितीयोऽपि पक्षः। अथ न प्रकृतसाधनाभावज्ञानं तद्विविक्तसमस्तप्रदेशोपलम्भनिमित्तं येन पूर्वोक्तो दोषः, किन्तु तद्विषयप्रमाणपंचकनिवृत्तिनिमित्तम् / तदुक्तम्-[ श्लो० वा० सू० 5 अभाव प० श्लो० 1 ] प्रमाणपञ्चकं यत्र वस्तुरूपे न जायते / वस्तुसत्तावबोधार्थ तत्राभावप्रमाणता // नन्वत्रापि वक्तव्यम्-कि सर्वदेश-कालावस्थितसमस्तप्रमातृसम्बन्धिनी तन्निवृत्तिस्तथाभूतसाधनाभावज्ञाननिमित्तं, उत प्रतिनियतदेशकालावस्थितात्मसम्बन्धिनी इति कल्पनाद्वयम् / यद्याद्या कल्पना सा न युक्ता, तथाभूतायास्तनिवृत्तेरसिद्धत्वात् / न चाऽसिद्धाऽपि तथाभूतज्ञाननिमित्तम् , अतिप्रसंगाव-सर्वस्यापि तथाभूतज्ञाननिमित्तं स्याव , केनचित् सह प्रत्यासत्तिविप्रकर्षाभावात् , अनभ्युपगमाच्च / न हि परेणापि प्रमाणपंचकनिवृत्तेरसिद्धाया अभावज्ञाननिमित्तताऽभ्युपगता, कृतयत्नस्यैव प्रमाणपंचकनिवृत्तेरभावसाधनत्वप्रतिपादनात् / / गत्वा गत्वा तु तान् देशान् यद्यर्थो नोपलभ्यते / तदान्यकारणाभावादसन्नित्यवगम्यते / [श्लो. वा. सू. 5 अर्था श्लो. 38 ] इत्यभिधानात् / यदि दूसरा प्रश्नकल्प मान ले तो वहाँ जिस देश में साध्याभाव का निश्चय है उस प्रतिनियत देश में साधनाभाव का निश्चय शक्य है, जैसे घटशून्य भूतल को प्रत्यक्ष देखने पर घटाभाव का निश्चय भूतल में होता है। किंतु इस प्रकार के अभाव प्रमाण से साध्य के अभाव में साधनाभाव का निश्चय होने पर भी जिस प्रकार के व्यतिरेक का निश्चय अभिप्रेत है वह नहीं हो सकता / वह तो तभी होता यदि साधनाभावनियत साध्याभाव का सर्वोपसंहार करके अर्थात सभी देश काल के 3 र्भाव से निश्चय हो / अन्यथा जहाँ साध्याभाव रहने पर भी साधनाभाव न रहेगा वहाँ साधन के रहने पर भी साध्य न रहने से वह साधन साध्यनियत नहीं होगा। निष्कर्ष यह.आया कि हेतु-साध्य के बीच नियमात्मक संबंध के निश्चय में व्यतिरेकनिश्चय निमित्त नहीं हो सकता / इसलिये अन्वयनिश्चयवत् व्यतिरेकनिश्चय से नियमनिश्चय होने का दूसरा पक्ष भी अयुक्त है। उक्त के विरोध में प्रतिवादी कहता है कि-अर्थप्रकटतारूप प्रकृतसाधन के अभावज्ञान में साधनशून्य सर्वदेशकाल का उपलम्भ निमित्त ही नहीं है, अत: उस उपलम्भ को अशक्य बताकर पूर्व में दोष दिया गया है वह नहीं लगेगा। साधनाभावज्ञान का निमित्त तो 'प्रत्यक्षादि पाँच में से उस विषय में किसी भी प्रमाण की प्रवृत्ति का न होना' यही है। जैसे कि कहा है - जिस वस्तु के स्वरूप में वस्तु की सत्ता जानने के लिये प्रमाण पंचक प्रवृत्त नहीं होता वहाँ अभाव प्रमाण की प्रवृत्ति होती है। इस कथन पर व्याख्याकार प्रतिवादी को कहते हैं कि यह बताईये कि-पूर्वोक्त साधनाभावज्ञान का निमित्तभूत प्रमाण पंचक की निवृत्ति क्या सर्वदेशकालगत समस्त प्रमातृलोक सम्बन्धी मानी जाय या केवल सीमित देशकालगतस्वमात्रसम्बन्धी मानी जाय? ये दो कल्पना