________________ निवारिसा पहविषा, रण्णा सं पिक्लिऊण आयेह / ते गंवूणं उग्धाडिउं च दारं निहालंति // 77 // सुद्धाणदो दिडो, दुहा वि गय-पाणओ तओ तेहिं / . उडमुहो खडियाए, भूमीए किं पि विलिहंतो // 78 // ततो आगंतूणं, बुद्धाणंदस्स वइयरं एयं / सयपुरिसेहि रण्णो, पुरओ सव्वं पि वाहरियं // 79 // तम्मि खणे पुप्फाणं, वुट्टी सिरिमल्लवाइणो उबरिं / सासणसुरीह मुका, महाओ इय जंपिरीइ निवं // 80 // एस नरेसर / बुद्धाणंदो सिरिमल्लवाइ-भणिएसुं / मंगेसं गविलेसुं, पडिओ जालम्मि मच्छु व्व // 81 // अमुलंतो नीहरिलं, चिंता-संताविओ य लज्जाए / हिययं पुहितु मओ, जल-सित्तो चुण्ण-पुनु व्व // 82 // जुयलं इय वुत्तं सोउं, रण्णा निव्वासिया तहा सुगया / महबोहे गंतूणं, जह पुणरवि नागया तत्थ // 83 // भत्तिभरेणं रण्णा, भरुयच्छे अहमहन्तमहिमाए / आयरियजिणाणंद-प्पमुहो आणाविओ संघो // 84 // सिरिमाहवाइगुरुणा, तत्तो नयचक्कनामओ गंथो / गुरुमणिय-विहाणेणं, पूत्ता वाइओ सम्मं // 85 // सिरिवद्धमाण-सासण-पभावगो इह जिणितु वाइगणं / बेउं च तियसरिं, स मल्लवाई गओ सग्गं // 86 // दिलीए नयचकमक-सरिसं चक्कि व्व गो-भासुर, सवणं पडिबक्स-लक्स-दलणं जेणक्यं भारहे। वस्से सिरिमाबाइगुरुणो चारु चरित्तं बुहा!, नाऊणं जिणसासणुबइकए बाए कुणेहादरं // 87 // " वादिप्रभावकविषये श्रीमल्लवादिकथा / 3] वि. सं. 1134 वर्षे विरचिते प्रभावकचरिते प्रभाचन्द्रसूरिः प्रतिपादयति स्मेत्थं संस्कृतवापा 75 पयैः श्रीमल्लवादिसूरिचरितम्संसारबार्सिविसारामिक्षारयन्तु दुस्तरात् / श्रीमल्लयादिसरियों, यानपात्रप्रभः प्रभुः // 1 // .. "दाल-लि-( s)-वर्षे चैत्रस्व धवलससम्याम् / : A gf षिचरितम् ॥"-प्रभावकारित-प्रान्ते (प्रालिलो. 15), म.प. प्रस्तावना 3