________________ प्रस्तावना सुयदेवी चि हुबंपह, पढमाओ चेव वरसिमेगाओं सविसेसमग्गिमाओ, होही तुह क्यण-नलिणाओ॥ 17 // नयचक-गंथरयणं, इव दाऊणं वरं च इणमत्थं / कहिलं संघस्स तओ, तिरोहिया सासणसुरी सा // 48 // जुयलं तचो मल्ल-मुहाओ, कुंडाउ सरस्सई-पवाहु व्व।। नीहरिउं अवइण्णो, नयचक्क-महासमुद्दम्मि // 19 // तस्स य माहप्पाओ, स जए संजाय-पवरजस-पवरो / संघेण वित्थरेणं, पवेसिओ वलहिनयरीए // 50 // संघेण पसन्नेणं, मल्लं अब्भत्थिऊण मुणिपवरं / नयचक-विवरणम्मि, धुरंमि लिहिओ इय सिलोगो / / 51 // "जयति नयचक्र-निर्जित-निःशेष-विपक्षलक्ष-विक्रान्तः। श्रीमल्लवादिसूरिजिनवचन-नभस्तल-विवखान्"॥५२॥ तयणु जिणाणंदगुरुं, संघेण-ब्भत्थिऊण आणीओ। अजियजस-जक्ख-मल्ले, संठावइ सूरि-पयवीए / / 53 / / तिन्नि वि गुण-मणि-निहिणो, पडिवक्ख-जयम्मि लद्ध-माहप्पा / तेसु वि अजियजसेणं, पमाणसत्थं कयं पवरं // 54 // पुव्वगय-सुत्तधारी, पमाणविजाइ विजिय-सुरसूरी / मल्लो वाइय-सल्लो, मणम्मि इय चिंतिउं लम्गो // 55 // जिणसासण-मालिन्, अम्ह गुरूणं जयम्मि जं जायं / बुद्धाणंदाओ तं, सल्लु व्व खुड्ड(ड)कए चित्ते / / 56 // कइया सो महदियहो, होही ! जेणं जिणित्तु गुरुवे / जिणसासण-गयणयलं, उज्जोइस्सामि सूरु व्व / / 57 // इय चिंतिय भरुयच्छे, गंतूण भणावए नरिंदाओ / मल्लो मल्लु व्व बली, वाय-कए बुद्ध-सीसवरे // 58 // तो तक्खणेण राया, बुद्धाणंद भणेइ आहविउं / सो पडिभणइ 'रणाओ, परम्मुहा हुंति किं सूरा ? // 59 // राया सयं सहाए, सब्मा सब्भूयवयम-गुण-कुसला / . . वाइ-पडिवाइणो उण, सपक्ख-कलिया समुवइट्ठा / 60 // सम्मेहिं ते भणिया, को तुम्हाणं भणिस्सइ पटमं / घुद्धाणदेण तओ, वृत्तमिमो चेव जपेड // 61 //