________________ नयचक्रस्य अविहि-परेण मए णं, जारिसयं कम्न काउमारद्धं / / तारिसयं संपतं, फलमवियल-दुक्ख-सय-जणयं // 31 // पच्छासावेण मुणिं, अजा दीणाणणं पलोइत्ता / पुच्छइ वच्छ ! विसनो, किं दीससि मुसिय-सारु व्व ! // 32 // तो जणणीए पुरओ, निय-वुत्तंतं भणेइ मल्लमुणी / सा वि हु संघस्स पुरो, कहेइ अइदुक्ख-संजणयं // 33 // तं सुणिय अइविसनो, संघो झूरेइ नत्थि अन्नत्थ / / नयचक्कपुत्थयमिणं कहिं पि चिंतामणि व्व जए // 34 // .. ता मल्लो उल्लवइ, नयचकं जाव नेव पावेमि / / ता वल्ल-भोयण-परो, गिरिवासमहं करिस्सामि // 35 // उग्गमभिगहमेयं, मुणिउं मल्लस्स साहु-मल्लस्स / संघो अईव दुक्खं, धरइ मणे निहिय-सल(ल्लु) व्व // 36 // तच्चलणे लग्गेउं, संघो अइदुम्मणो मुणिं भणइ / केवल-वल्लाहारेण, वाएण तणू विणस्सिहिद // 37 // ता पसिऊणं विगई, तुम्हे गिण्हेसु देह-रक्खट्ठा / / इय संघस्सुवरोहा, तं वयणं तेण पडिवन्नं // 38 // मणिय च-"कयकिच्चेहि वि तिहुयण-गुरूहि सिरि-धरिय-पाणि-पउमेहिं / जं मन्निज्जइ संघो, आणं को तस्स लंघेइ ? // 39 // " चउमासस्स य पारण-दिणम्मि पडिवज्जिऊण तं वयणं / वलहीनयर-समीवे, गिरि-विवरे सो ठिओ साहू // 40 // पढमसिलोगस्सत्थं, नयचक्कस्सेस चिंतमाणो सो।. साहूहिं गंतूणं, उव[य]रिजइ भत्त-पाणेहिं // 41 / / तयणु चउबिहसंघो, आराहइ पूयणेण सुयदेविं। सा वि हु कय-उवओगा, निसाइ मल्लं भणइ एवं // 42 // के मिट्टा ? तो मल्लो, भणेइ वल्ला, पुणो वि सुयदेवी। छहि मासेहि गएहि, तहेव पुच्छेइ केहि समं? // 13 // अवधारणा-धुरीणो सो वि हु, जंपेइ घय-गुलेहि समं / इय पच्चुत्तर-सवणा, सुयदेवी विम्हिया चित्ते // 4 // पच्चक्खीहोऊणे, सा साहइ मल्ल ! वंछियं अत्थं / मम्गसु में जेण तयं, पूरेमी कप्पवल्लि व्य // 45 // सो भणइ जइ पसन्ना, सञ्चं ता देसु जिगरहस्समयं / . नयचकगंथ-पुत्थय-यणं कर-सररहे मज् // 16 // .