________________ प्रस्तावना सूरी अब्भुयपन्ना-कलियं मल्लं पलोइडं चिल्लं / नूणं सयमेवेसो, वाइस्सइ पुत्थयं एयं // 16 // तो भणइ गुरू तं पइ, सक्खं काऊण अज्जियं जणणिं / नयचक्कगंथ-पुत्थयमेयं तं मा पढिज्जासु // 17 // इय सिक्खं दाऊणं, मुत्तुं तं अज्जिया-सगासम्मि / जण-पडिबोह-निमित्तं, सूरी विहरेइ अन्नत्थ // 18 // तो मल्लमुणी चिन्तइ, किमहं सुय-सायरेहिं सूरीहिं / नयचक्कतक्कगन्थ-प्पवायणे वि हु पडिनिसिद्धो // 19 // अभिलप्पाण सुयाणं, वण्णा सु(स)व्वत्थ हुन्ति सारिच्छा / बालु व्व रक्खसाओ, ता किं एयाउ बीहविओ? // 20 // ता इत्थ अस्थि अत्थो, को वि अउव्वो तओ निसिद्धो हैं / " तम्हा एयं वाइय, कया भविस्सामि सुकयत्थो? // 21 // जओ-'वारियवामा वामा, बाला बाला य हुति णियमेणं / जुत्ताजुत्त-वियारं कुग्गह-जोगाउ न चयंति' // 22 // दिव्व-वसा बाहूहि, तरिजए सायरो अपारो वि। न हु निय-मण-संभूओ, मयणु व्व असग्गहो कइया // 23 // कय-निच्छओ मणमि, मल्लमुणी तस्स वायणाइ-कए / अजं कज्जे सजं पि हु, न य पुच्छेइ विग्घ-कए // 24 // तो लद्धावसरो सो, दिट्टि परिवंचिऊण अज्जाए। गहिऊण पुत्थयं तं मल्लो इय वाइउं लग्गो // 25 // हरिसेण पढमपत्तं, करे करेऊण आइम-सिलोगं / वाएइ गंथ-वित्थर-परमत्थ-पयासणं एयं // 26 // "विधि-नियम-भङ्ग-वृत्ति-व्यतिरिक्तत्वादनर्थकमबोधम् / जैनादन्यच्छासनमनृतं भवतीति वैधर्म्यम् // 27 // " चिंतइ आइसिलोग, जा मीलिवि नयण-पंकए एयं / / ता सासणदेवीए, अवहरिओ पुत्थओ सहसा // 28 // उम्मीलिय-नयणो उण, पुरओ सो पुत्थयं अपिच्छंतो। रोरु व्व गय-निहाणो, विहत्थ-चित्तो मलइ हत्थे // 29 // हा हा ! धिट्ठत्तेण, लंघतेणं गुरूण इय आणं / / पुत्थयरयणं गमियं, नवरि मए चरणरयणं पि // 30 //