________________ नयचक्रस्य "अस्थि इह भरहवासे, भरुयच्छं नाम पट्टणं पवरं / अस्सावबोहचेइय-धयमिसओ हसइ जं सग्गं // 1 // तत्थासि जेणसासण-विभूसणं गणहरो जिणाणंदो। बुद्धाणंदेण य बुद्धवाइणा सो इमं भणिओ // 2 // अन्नुन्नं वाएणं, जो जिणइ तेण इत्थ रहियव्वं / गन्तव्वं अवरेणं, इय भणिय तओ कओ वाओ // 3 // दिव्व-वसा सूरी हिं, तस्स पुरो हारियं कए वाए। तत्तो निहरिऊणं, संघ-जुया ते गया वलहिं // 4 // तेणं अवमाणेणं, बुद्धाणंदक्ख-भिक्खु-जिणिएणं / आलाणखंभ-नियलिय-गउ व्व सूरी दुही वसइ // 5 // इत्तो सूरिवराणं, दुल्लहदेवी समासि लहुभइणी / तीए य तओ पुत्ता, अजियजस-जक्ख-मल्लक्खा // 6 // सा सिरिदुल्लहदेवी, वेरग्गाओ चइत्तु रयणाई / पुत्तत्तय-परिकलिया, चित्तं रयणत्तयं लेइ // 7 // सा सूरीण पसाया, समग्गगुण-रयणभायणं जाया / विहिया सुरतरु-सेवा, क्या वि किं निप्फला होइ ? // 8 // तीए सुविचारतं, सामत्थं सयल-धम्मकम्मेसुं / ' नाउं संघो चिंतइ, एसुचिया कोस-कज्जेसु // 9 // तो संघ-सम्मएणं, भंडाराईण सयलकजंमि। सूरिहिं सा ठविया, गुणेहिं परमुन्नई पत्ता // 10 // तिन्नि वि ते तीइ सुया, मुणिणो सिद्धंतसार-मयरंदं / भसलु व्व सया गुरु-मुह-कमलाउ पिबंति आकंठं // 11 // . सिक्खविया विज्जाओ, सव्वाओ ताण सूरिराएणं / पुव्वगयं नयचकं, पमाणगंथं पमुत्तूणं // 12 // जं तं सूरिवरेहिं, सारुद्धारं करित्तु निम्मवियं / सत्थं नयचक्कक्खं, पुव्वस्स पमाणवायस्स // 13 // आई-मज्झ-वसाणे, सपाडिहेरस्स तस्स पढणम्मि / गुरु-चेइय-संघाणं, कीरइ पूया अइमहेणं // 14 // एयस्स सुरेहिं अहिट्ठियस्स पुव्वागया इमा नीई / / कायव्वा सेयत्थं, महाअणत्थो हवइ इहरा // 15 //