________________ न्यायकुमुदचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र ग्रन्थ इन टीकाओंसे पहिले रचे गए हैं / अतः प्रभाचन्द्र ईसा की 12 वीं . शताब्दीके बाद के विद्वान् नहीं हैं / ३-वादिदेवसूरिका जन्म वि० सं० 1143 तथा स्वर्गवास वि० सं० 1222 में हुआ था। ये वि० सं० 1174 में आचार्यपद पर प्रतिष्ठित हुए थे / संभव है इन्होंने वि० सं० 1175 ( ई० 1118 ) के लगभग अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ स्याद्वादरत्नाकरकी रचना की होगी। स्याद्वादरत्नाकरमें प्रभाचन्द्रके प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रका न केवल शब्दार्थानुसरण ही किया गया है किन्तु कवलाहारसमर्थन प्रकरणमें तथा प्रतिबिम्ब चर्चा में प्रभाचन्द्र और प्रभाचन्द्र के प्रमेयकमलमार्तण्डका नामोल्लेख करके खंडन भी किया गया है / अतः प्रभाचन्द्र के समयकी उत्तरावधि अन्ततः ई० 1100 सुनिश्चित हो जाती है / ४-जैनेन्द्रव्याकरणके अभयनन्दिसम्मत सूत्रपाठ पर श्रुतकीर्तिने पंचवस्तुप्रक्रिया बनाई है। श्रुतकीर्ति कनड़ीचन्द्रप्रभचरित्रके कर्ता अग्गलकविके गुरु थे। अग्गलकविने शक 1011, ई० 1089 में चन्द्रप्रभचरित्र पूर्ण किया था / अतः श्रुतकीर्तिका समय भी लगभग ई० 1075 .. होना चाहिए / इन्होंने अपनी प्रक्रियामें एक न्याप्त ग्रन्थका उल्लेख किया है / संभव है कि यह प्रभाचन्द्रकृत शब्दाम्भोजभास्कर नामका ही न्यास हो। यदि ऐसा है तो प्रभाचन्द्रकी उत्तरावधि ई० 1075 मानी जा सकती है। शिमोगा जिलेके शिलालेख नं० 46 से ज्ञात होता है कि पूज्यपादने भी जैनेन्द्रन्यासकी रचना की थी। यदि श्रुतकीर्तिने न्यास पदसे पूज्यपादकृत न्यासका निर्देश किया है तब 'टीकामाल' शब्दसे सूचित होनेवाली टीकाकी मालामें तो प्रभाचन्द्रकृत शब्दाम्भोजभास्करको पिरोया ही जा सकता है / इस तरह प्रभाचन्द्रके पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती उल्लेखोंके आधारसे हम प्रभाचन्द्रका समय सन् 180 से 1065 तक निश्चित कर सकते हैं। इन्हीं उल्लेखोंके प्रकाशमें जब हम प्रमेयकमलमार्तण्डके 'श्री भोजदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेख तथा न्यायकुमुदचन्द्रके 'श्री जयसिंहदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेखको देखते हैं तो वे अत्यन्त प्रामाणिक मालूम होते हैं / उन्हें किसी टीका टिप्पणकारका या किसी अन्य व्यक्तिकी करतूत कहकर नहीं टाला जा सकता। उपयुक्त विवेचनसे प्रभाचन्द्र के समयकी पूर्वावधि और उत्तरावधि करीब करीब भोजदेव और जयसिंह देवके समय तक ही आती है / अतः प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें पाए जाने वाले प्रशस्ति लेखोंकी प्रामाणिकता और प्रभाचन्द्रकर्तृतामें सन्देहको कोई स्थान नहीं रहता। इसलिए प्रभाचन्द्रका समय ई० 180 से 1065 तक माननेमें कोई बाधा नहीं है / 1 देखो-इसी प्रस्तावनाका 'श्रुतकीर्ति और प्रभाचन्द्र' अंश, पृ० 36 / ___ * प्रमेयकमलमार्तण्डके प्रथमसंस्करणके सम्पादक पं० बंशीधरजी शास्त्री सोलापुरने उक्त संस्करण के उपोद्धातमें 'श्रीभोजदेवराज्ये' प्रशस्तिके अनुसार प्रभाचन्द्रका समय ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दी सूचित किया है। और आपने इसके समर्थनके लिए 'नमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीकी गाथाओंका प्रमेयकमलमार्तण्डमें उद्धृत होना' यह प्रमाण उपस्थित किया है। पर आपका यह प्रमाण अभ्रान्त नहीं है। प्रमेयकमलमार्तण्डमें विग्गहगइमावण्णा' और 'लोयायासपऐसे' गाथाएँ उद्धत हैं। पर ये गाथाएँ नेमिचन्द्रकृत नहीं हैं। पहिली