________________ प्रस्तावना प्रमाण उद्धृत किए गए हैं। संभव है कि वादिराजके समयमें प्रभाचन्द्रकी प्रसिद्धि न हो पाई हो, अन्यथा तर्कशास्त्रके रसिक वादिराज अपने इस यशस्वी ग्रन्थकारका नामोल्लेख किए बिना न रहते / यद्यपि ऐसे नकारात्मक प्रमाण स्वतन्त्रभावसे किसी आचार्यके समयके साधक या बाधक नहीं होते फिर भी अन्य प्रबल प्रमाणोंके प्रकाशमें इन्हें प्रसङ्गसाधन के रूपमें तो उपस्थित किया ही जा सकता है / यही अधिक संभव है कि वादिराज और प्रभाचन्द्र समकालीन और सम-व्यक्तित्वशाली रहे हैं अत: वादिराजने अन्य आचार्योंके साथ प्रभाचन्द्रका उल्लेख नहीं किया है। अब हम प्रभाचन्द्रकी उत्तरावधिके नियामक कुछ प्रमाण उपस्थित करते हैं १-ईसाकी चौदहवीं शताब्दीके विद्वान् अभिनवधर्मभूषणने न्यायदीपिका ( पृ० 16 ) में प्रमेयकमलमार्तडका उल्लेख किया है। इन्होंने अपनी न्यायदीपिका वि० सं० 1442 ( ई० 1385 ) में बनाई थी* / ईसाकी 13 वीं शताब्दीके विद्वान् मल्लिषेणने अपनी स्याद्वादमञ्जरी ( रचना समय ई० 1213 ) में न्यायकुमुदचन्द्रका उल्लेख किया है / ईसाकी 12 वीं शताब्दीके विद्वान् आ० मलयगिरिने आवश्यकनियुक्तिटीका ( पृ० 371 A. ) में लघीयनयकी एक कारिकाका व्याख्यान करते हुए 'टीकाकारके' नामसे न्यायकुमुदचन्द्रमें की गई उक्त कारिकाकी व्याख्या उद्धृतकी है / ईसाकी 12 वीं शताब्दीके विद्वान् देवभद्रने न्यायावतारटीकाटिप्पण ( पृ० 21,76 ) में प्रभाचन्द्र और उनके न्यायकुमुदचन्द्रका नामोल्लेख किया है / अतः इन 12 वीं शताब्दी तकके विद्वानों के उल्लेखों के आधारसे यह प्रामाणिकरूपसे कहा जा सकता है कि प्रभाचन्द्र ई० 12 वीं शताब्दीके बाद के विद्वान् नहीं है / . २-रत्नकरण्डश्रावकाचार और समाधितन्त्र पर प्रभाचन्द्रकृत टीकाएँ उपलब्ध हैं / पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार कि इन दोनों टीकाओंको एक ही प्रभाचन्द्र के द्वारा रची हुई सिद्ध किया है / आपके मतसे ये प्रभाचन्द्र प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके रचयितासे भिन्न हैं / रत्नकरण्डटीकाका उल्लेख पं० आशाधरजी द्वारा अनागारधर्मामृत टीका (अ० 8 श्लो० 63 ) में किये जाने के कारण इस टीकाका रचना काल वि० सं० 1300 से पहिलेका अनुमान किया गया है; क्योंकि अनागारधर्मामृत टीका वि० सं० 1300 में बनकर समाप्त हुई थी। अन्ततः मुख्तारसा० इस टीकाका रचनाकाल विक्रमकी 13 वीं शताब्दीका मध्यभाग मानते हैं / अस्तु, फिलहाल मुख्तारसा० के निर्णयके अनुसार इसका रचनाकाल वि० 1250 ( ई० 1193) ही मान कर प्रस्तुत विचार करते हैं / ___ रनकरण्डश्रावकाचार (पृ०६) में केवलिकवलाहारके खंडनमें न्यायकुमुदचन्द्रगत शब्दावलीका पूरा पूरा अनुसरण करके लिखा है कि-"तदलमतिप्रसङ्गेन प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे प्रपञ्चतः प्ररूपणात् / " इसी तरह समाधितन्त्र टीका (पृ० 15) में लिखा है कि-"यैः पुनर्योगसांख्यैः मुक्तौ तत्प्रच्युतिरात्मनोऽभ्युपगता ते प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च मोक्षविचारे विस्तरतः प्रत्याख्याताः / " इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि प्रमेयकमलमार्तण्ड और * स्वामी समन्तभद्र प० 227 / + रत्नकरण्डश्रावकाचार भूमिका पु० 66 से /