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________________ प्रस्तावना ( अवैदिकदर्शन) अश्वघोष और प्रभाचन्द्र-अश्वघोषका समय ईसाका द्वितीय शतक माना जाता है / इनके बुद्धचरित और सौन्दरनन्द दो महाकाव्य प्रसिद्ध हैं / सौन्दरनन्दमें अश्वघोषने प्रसङ्गतः बौद्धदर्शनके कुछ पदार्थों का भी सारगर्भ विवेचन किया है। आ० प्रभाचन्द्रने शून्यनिर्वाणवादका खंडन करते समय पूर्वपक्षमें ( प्रमेयक० पृ० 687 ) सौन्दरनन्दकाव्यसे निम्नलिखित दो श्लोक उद्धृत किए हैं "दीपो यथा निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् / दिशं न काश्चिद् विदिशं न काञ्चित् स्नेहक्षयात् केवलमेति शान्तिम् // जीवस्तथा निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् / दिशं न काश्चिद्विदिशं न काश्चिक्लेशक्षयात् केवलमेति शान्तिम् // " [ सौन्दरनन्द 16 / 28,26] नागार्जुन और प्रभाचन्द्र-नागार्जुन की माध्यमिककारिका और विग्रहव्यावतिनी दो ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं / ये ईसाकी तीसरी शताब्दीके विद्वान् हैं। इन्हें शून्यवादके प्रस्थापक होनेका श्रेय प्राप्त है। माध्यमिककारिकामें इन्होंने विस्तृत परीक्षाएँ लिखकर शून्यवादको दार्शनिक * रूप दिया है। विग्रहव्यावर्तिनी भी इसी तरह शून्यवादका समर्थन करनेवाला छोटा प्रकरण है / प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 132 ) में माध्यमिकके शून्यवादका खंडन करते समय पूर्वपक्षमें प्रमाणवार्तिककी कारिकाओंके साथ ही साथ माध्यमिककारिकासे भी 'न स्वतो नापि परतः' और 'यथा मया यथा स्वप्नो...' ये दो कारिकाएँ उद्धृत की हैं। वसुबन्धु और प्रभाचन्द्र-वसुबन्धुका अभिधर्मकोश ग्रन्थ प्रसिद्ध है। इनका समय ई० 400 के करीब माना जाता है। अमिधर्मकोश बहुत अंशोंमें बौद्धदर्शनके सूत्रग्रन्थका कार्य करता है / प्रभाचन्द्रने न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 310) में वैभाषिक सम्मत द्वादशाङ्ग प्रतीत्यसमुत्पादका खंडन करते समय प्रतीत्यसमुत्पादका पूर्वपक्ष वसुबन्धुके अभिधर्मकोशके आधारसे ही लिखा है। उसमें यथावसर अभिधर्मकोशसे 2 / 3 कारिकाएँ भी उद्धृत की हैं / देखोन्यायकुमुदचन्द्र पृ० 365 / दिङ्नाग और प्रभाचन्द्र-श्रा० दिग्नागका स्थान बौद्धदर्शनके विशिष्ट संस्थापकोंमें है / इनके न्यायप्रवेश, और प्रमाणसमुच्चय प्रकरण मुद्रित हैं। इनका समय ई० 425 के आसपास माना जाता है। प्रमाणसमुच्चयमें प्रत्यक्षका कल्पनापोढ लक्षण किया है। इसमें अभ्रान्तपद धर्मकीर्तिने जोड़ा है। इन्हींके प्रमाणसमुच्चय पर धर्मकीर्तिने प्रमाणवार्तिक रचा है / भिक्षु राहुलजीने दिग्नाग के आलम्बनपरीक्षा, त्रिकालपरीक्षा, और हेतुचक्रडमरु आदि ग्रन्थोंका भी उल्लेख किया है। आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० 80 ) में 1 वादन्याय परिशिष्ट पृ. VI.
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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