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________________ 20 न्यायकुमुदचन्द्र तथा न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 141 ) में ब्रह्मवादके पूर्वपक्षमें इनके बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्य- . वार्तिक (3 / 5 / 43-44) से "यथा विशुद्धमाकाशं" आदि दो कारिकाएँ उद्धृत की हैं। भामह और प्रभाचन्द्र-भामहका काव्यालङ्कार ग्रन्थ उपलब्ध है। शान्तरक्षितने तत्त्वसंग्रह ( पृ० 261 ) में भामहके काव्यालङ्कारकी अपोहखण्डन वाली "यदि गौरित्ययं शब्दः" आदि तीन कारिकाओंकी समालोचनाकी है। ये कारिकाएँ काव्यलङ्कारके 6 वें परिच्छेद ( श्लो० 17-16) में पाई जाती हैं। तत्त्वसंग्रहकारका समय ई० 705-762 तक सुनिर्णीत है / बौद्धसम्मत प्रत्यक्षके लक्षणका खण्डन करते समय भामहने ( काव्यालङ्कार 5 / 6) दिङ्नागके मात्र 'कल्पनापोढ' पदवाले लक्षणका खण्डन किया है, धर्मकीर्तिके 'कल्पनापोढ और अभ्रान्त' उभयविशेषणवाले लक्षणका नहीं। इससे ज्ञात होता है कि भामह दिङ्नागके उत्तरवर्ती तथा धर्मकीर्तिके पूर्ववर्ती हैं / अन्ततः इनका समय ईसाकी 7 वीं शताब्दी का पूर्वभाग है / आ० प्रभाचन्द्रने अपोहवादका खण्डन करते समय भामहकी अपोहखण्डनविषयक “यदि गौरित्ययं" आदि तीनों कारिकाएँ प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० 432 ) में उद्धृत .. की हैं। यह मी संभव है कि ये कारिकाएँ सीधे भामहके ग्रन्थसे उद्धृत न होकर तत्त्वसंग्रहके द्वारा उद्धृत हुई हों। बाण और प्रभाचन्द्र-प्रसिद्ध गद्यकाव्य कादम्बरीके रचयिता बाणभट्ट, सम्राट हर्षवर्धन (राज्य 606 से 648 ई०) की सभाके कविरत्न थे। इन्होंने हर्षचरितकी भी रचना की थी। बाण, कादम्बरी और हर्षचरित दोनों ही ग्रन्थोंको पूर्ण नहीं कर सके / इनकी कादम्बरीका आद्यश्लोक "रजोजुषे जन्मनि सत्त्ववृत्तये” प्रमेयकमलमार्तण्ड ( पृ० 218) में उद्धृत है / आ० प्रभाचन्द्रने वेदापौरुषेयत्वप्रकरणमें (प्रमेयक० पृ० 313 ) कादम्बरीके कर्तृत्वके विषय में सन्देहात्मक उल्लेख किया है-"कादम्बर्यादीनां कर्तृविशेषे विप्रतिपत्तेः' अर्थात् कादम्बरी आदिके कर्ताके विषयमें विवाद है / इस उल्लेखसे ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्रके समयमें कादम्बरी आदि ग्रन्थोंके कर्ता विवादग्रस्त थे। हम प्रभाचन्द्रका समय आगे ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दी सिद्ध करेंगे। माघ और प्रभाचन्द्र-शिशुपालबध काव्यके रचयिता माघ कविका समय ई० 660675 के लगभग है। माघकविके पितामह सुप्रभदेव राजा वर्मलातके मन्त्री थे। राजा वर्मलात का उल्लेख ई० 625 के एक शिलालेखमें विद्यमान है अतः इनके नाती माघ कविका समय ई० 675 तक मानना समुचित है / प्रभाचन्द्रने माघकाव्य (1 / 23 ) का "युगान्तकालप्रतिसंहृतात्मनो..." श्लोक प्रमेयकमलमार्तण्ड ( पृ० 688 ) में उद्धृत किया है। इससे ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्रने माघकाव्यको देखा था। 1 देखो संस्कृत साहित्यका इतिहास पृ० 143 /
SR No.004327
Book TitleNyayakumudchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1941
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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