________________ प्रस्तावना 16 8 वीं सदी का पूर्वार्ध सुनिश्चित होता है / आ० प्रभाचन्द्र ने न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 146) में मंडनमिश्रकी ब्रह्मसिद्धिका "आहुर्विधातृ प्रत्यक्षं" श्लोक उद्धृत किया है। न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 572) में विधिवादके पूर्वपक्ष में मंडनमिश्रके विधिविवेकमें वर्णित अनेक विधिवादियोंका निर्देश किया गया है। उनके मतनिरूपण तथा समालोचन में विधिविवेक ही आधारभूत मालूम होता है। प्रभाकर और प्रभाचन्द्र-शाबरभाष्यकी बृहती टीकाके रचयिता प्रभाकर करीब करीब कुमारिलके समकालीन थे। भट्टकुमारिलका शिष्य परिवार भाट्टके नामसे ख्यात हुआ तथा प्रभाकर के शिष्य प्राभाकर या गुरुमतानुयायी कहलाए। प्रभाकर विपर्ययज्ञानको स्मृतिप्रमोष या विवेकाख्याति रूप मानते हैं / ये अभावको स्वतन्त्र प्रमाण नहीं मानते / वेदवाक्योंका अर्थ नियोगपरक करते हैं / प्रभाचन्द्रने अपने ग्रन्थोंमें प्रभाकरके स्मृतिप्रमोष, नियोगवाद आदि सभी सिद्धान्तों का विस्तृत खंडन किया है / शालिकनाथ और प्रभाचन्द्र-प्रभाकरके शिष्योंमें शालिकनाथका अपना विशिष्ट स्थान है। इनका समय ईसाकी 8 वीं शताब्दी है। इन्होंने बृहतीके ऊपर ऋजुविमला नाम की पञिका लिखी है / प्रभाकरगुरुके सिद्धान्तोंका विवेचन करनेके लिए इन्होंने प्रकरणपश्चिका नामका स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा है। ये अन्धकारको स्वतन्त्र पदार्थ नहीं मानते किन्तु ज्ञानानुत्पत्तिको ही अन्धकार कहते हैं / आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० 238) तथा न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० 666 ) में शालिकनाथके इस मतकी विस्तृत समीक्षा की है। शङ्कराचार्य और प्रभाचन्द्र-आद्य शङ्कराचार्यके ब्रह्मसूत्रशाङ्करभाष्य, गीताभाष्य, उपनिषद्भाष्य आदि अनेकों ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। इनका समय ई० 788 से 820 तक माना जाता है। शाङ्करभाष्यमें धर्मकीर्तिके 'सहोपलम्भनियमात् ' हेतुका खण्डन होनेसे यह समय समर्थित होता है। श्रा० प्रभाचन्द्रने शङ्करके अनिर्वचनीयार्थख्यातिवादकी समालोचना प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्रमें की है / न्यायकुमुदचन्द्रके परमब्रह्मवादके पूर्वपक्षमें शाङ्करभाष्यके आधार से ही वैषम्य नैपुण्य आदि दोषोंका परिहार किया गया है / . सुरेश्वर और प्रभाचन्द्र-शङ्कराचार्यके शिष्योंमें सुरेश्वराचार्यका नाम उल्लेखनीय है। इनका नाम विश्वरूप भी था। इन्होंने तैत्तिरीयोपनिषद्भाष्यवार्तिक, बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिक, मानसोल्लास, पञ्चीकरणवार्तिक, काशीमृतिमोक्षविचार, नैष्कर्म्यसिद्धि आदि ग्रन्थ बनाए हैं / आ० विद्यानन्द ( ईसाकी 6 वीं शताब्दी ) ने अष्टसहस्री ( पृ० 162 ) में बृह. दारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिकसे " ब्रह्माविद्यावदिष्टञ्चेन्ननु” इत्यादि कारिकाएँ उद्धृत की हैं / अतः इनका समय भी ईसाकी 6 वीं शताब्दीका पूर्वभाग होना चाहिए। ये शङ्कराचार्य ( ई० 788 से 820) के साक्षात् शिष्य थे। आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० 44-45) 1 द्रष्टव्य-अच्युतपत्र वर्ष 3 अङ्क 4 में म० म० गोपीनाथ कविराज का लेख /