________________ 18 न्यायकुमुदचन्द्र उद्धृत हुआ है / इसके सिवाय न्यायकुमुदचन्द्र में शाबरभाष्यके कई वाक्य प्रमाणरूपमें और पूर्वपक्ष में उद्धृत किए गए हैं। कुमारिल और प्रभाचन्द्र-भट्टकुमारिलने शाबरभाष्य पर मीमांसाश्लोकवार्तिक, तन्त्रवार्तिक और टुप्टीका नामकी व्याख्या लिखी है / कुमारिलने अपने तन्त्रवार्तिक ( पृ० 251253 ) में वाक्यपदीयके निम्नलिखित श्लोककी समालोचना की है ___“अस्त्यर्थः सर्वशब्दानामिति प्रत्याय्यलक्षणम् / अपूर्वदेवतास्वर्गः सममाहुर्गवादिषु // " [वाक्यप० 2 / 121] इसी तरह तन्त्रवार्तिक ( प० 209-10) में वाक्यपदीय ( 117 ) के "तत्त्वावबोधः शब्दानां नास्ति व्याकरणाहते" अंश उद्धृत होकर खंडित हुआ है / मीमांसाश्लोकवार्तिक ( वाक्याधिकरण श्लो० 51 ) में वाक्यपदीय ( 2 / 1-2 ) में निर्दिष्ट दशविध या अष्टविध वाक्यलक्षणोंका समालोचन किया गया है। भर्तृहरिके स्फोटवादकी आलोचना भी कुमारिलने मीमांसाश्लोकवार्तिकके स्फोटवादमें बड़ी प्रखरतासे की है। चीनी यात्री इत्सिंगने अपने यात्राविवरणमें भर्तृहरिका मृत्युसमय ई० 650 बताया है / अतः भर्तृहरिके समालोचक कुमारिलका समय ईस्वी 7 वीं शताब्दी का उत्तर भाग मानना समुचित है। आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें सर्वज्ञवाद, शब्दनित्यत्ववाद, वेदापौरुषेयत्ववाद, आगमादिप्रमाणोंका विचार, प्रामाण्यवाद आदि प्रकरणोंमें कुमारिलके श्लोकवार्तिकसे पचासों कारिकाएँ उद्धृत की हैं / शब्दनित्यत्ववाद आदि प्रकरणोंमें कुमारिलकी युक्तियोंका सिलसिलेवार सप्रमाण उत्तर दिया गया है / कुमारिलने आत्माको व्यावृत्त्यनुगमात्मक या नित्यानित्यात्मक माना है / प्रभाचन्द्रने आत्माकी नित्यानित्यात्मकताका समर्थन करते समय कुमारिलकी "तस्मादुभयहानेन व्यवृत्त्यनुगमात्मकः" आदि कारिकाएँ अपने पक्षके समर्थनमें भी उद्धृत की हैं। इसी तरह सृष्टिकर्तृत्वखंडन, ब्रह्मवादखंडन, आदिमें प्रभाचन्द्र कुमारिलके साथ साथ चलते हैं। सारांश यह है कि प्रभाचन्द्रके सामने कुमारिलका मीमांसाश्लोकवार्तिक एक विशिष्ट ग्रन्थके रूप में रहा है। इसीलिए इसकी आलोचना भी जमकर की गई है / रलोकवार्तिक की भट्ट उम्बेककृत तात्पर्यटीका अभी ही प्रकाशित हुई है / इस टीकाका आलोडन भी प्रभाचन्द्रने खूब किया है। सर्वज्ञवादमें कुछ कारिकाएँ ऐसी भी उद्धृत हैं जो कुमास्लिके मौजूदा श्लोकवार्तिकमें नहीं पाई जाती / संभव है ये कारिकाएँ कुमारिलकी बृहट्टीका या अन्य किसी ग्रन्थ की हों। मंडनमिश्र और प्रभाचन्द्र-श्रा० मंडनमिश्रके मीमांसानुक्रमणी, विधिविवेक, भावनाविवेक, नैष्कर्म्यसिद्धि, ब्रह्मसिद्धि, स्फोटसिद्धि आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं / इनका समय ईसाकी ८वीं शताब्दीका पूर्वभाग है। आचार्य विद्यानन्दने (ई. 6 वीं शताब्दी का पूर्वभाग ) अपनी अष्टसहस्रीमें मण्डनमिश्र का नाम लिया है / यतः मण्डनमिश्र अपने ग्रन्थोंमें सप्तमशतकवर्ती कुमारिलका नामोल्लेख करते हैं / अतः इनका समय ई० की सप्तमशताब्दीका अन्तिमभाग तथा 1 देखो बृहती द्वि० भागकी प्रस्तावना।