________________ 22 न्यायकुमुदचन्द्र 'स्तुतश्च अद्वैतादिप्रकरणानामादौ दिग्नागादिभिः सद्भिः' लिखकर प्रमाणसमुच्चयका 'प्रमाणभूताय' इत्यादि मंगलश्लोकांश उद्धृत किया है / इसी तरह अपोहवादके पूर्वपक्ष ( प्रमेयक० पृ० 436 ) में दिग्नागके नामसे निम्नलिखित गद्यांश भी उद्धृत किया है"दिग्नागेन विशेषणविशेष्यभावसमर्थनार्थम् 'नीलोत्पलादिशब्दा अर्थान्तरनिवृत्तिविशिष्टानर्थानाहुः' इत्युक्तम् / " धर्मकीर्ति और प्रभाचन्द्र-बौद्धदर्शनके युगप्रधान आचार्य धर्मकीर्ति इसाकी 7 वीं शताब्दीमें नालन्दाके बौद्धविद्यापीठके आचार्य थे। इनकी लेखनीने भारतीय दर्शनशास्त्रोंमें एक युगान्तर उपस्थित कर दिया था। धर्मकीर्तिने वैदिकसंस्कृति पर दृढ़ प्रहार किए हैं। यद्यपि इनका उद्धार करनेके लिए व्योमशिव, जयन्त, वाचस्पतिमिश्र, उदयन आदि आचार्योने कुछ उठा नहीं रखा। पर बौद्धोंके खंडनमें जितनी कुशलता तथा सतर्कतासे जैनाचार्योने लक्ष्य दिया है उतना अन्यने नहीं। यही कारण है कि अकलङ्क, हरिभद्र, अनन्तवीर्य, विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र, अभयदेव, वादिदेवसूरि आदिके जैनन्यायशास्त्रके ग्रन्थोंका बहुभाग बौद्धोंके खंडनने ही रोक रखा है। धर्मकीर्तिके विषयमें मैं विशेष ऊहापोह "अकलङ्कग्रन्थत्रय” की प्रस्तावना (पृ० 18.) में कर आया हूँ। इनके प्रमाणवार्त्तिक, हेतुबिन्दु, न्यायबिन्दु, सन्तानान्तरसिद्धि, वादन्याय, सम्बन्धपरीक्षा आदि ग्रन्थोंका प्रभाचन्द्रको गहरा अभ्यास था। इन ग्रन्थों की अनेकों कारिकाएँ, खासकर प्रमाणवार्तिक की कारिकाएँ प्रभाचन्द्रके ग्रन्थोंमें उद्धृत हैं। मालूम होता है कि सम्बन्धपरीक्षाकी अथ से इति तक 23 कारिकाएँ प्रमेयकमलमार्तण्डके सम्बन्धवादके पूर्वपक्ष में ज्यों की त्यों रखी गई हैं, और खण्डित हुई हैं / विद्यानन्दके तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक में इसकी कुछ कारिकाएँ ही उद्धृत हैं। वादन्यायका "हसति हसति स्वामिनि" आदि श्लोक प्रमेयकमलमार्तण्डमें उद्धृत है / संवेदनाद्वैतके पूर्वपक्षमें धर्मकीर्तिके 'सहोपलम्भनियमात्' आदि हेतुओंका निर्देश कर बहुविध विकल्प जालोंसे खण्डन किया गया है। वादन्यायकी "असाधनाङ्गवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः" कारिकाका और इसके विविध व्याख्यानोंका सयुक्तिक उत्तर प्रमेयकमलमार्तण्डमें दिया गया है। इन सब ग्रन्थोंके अवतरण और उनसे की गई तुलना न्यायकुमुदचन्द्रके टिप्पणोंमें देखनी चाहिए। प्रज्ञाकरगुप्त और प्रभाचन्द्र-धर्मकीर्तिके व्याख्याकारोंमें प्रज्ञाकरगुप्तका अपना खास स्थान है / उन्होंने प्रमाणवार्तिक पर प्रमाणवार्तिकालङ्कार नामकी विस्तृत व्याख्या लिखी है / इनका समय भी ईसाकी 7 वीं शताब्दीका अन्तिम भाग और आठवींका प्रारम्भिक भाग है / इनकी प्रमाणवार्तिकालङ्कार टीका वार्तिकालङ्ककार और अलङ्कारके नामसे भी प्रख्यात रही है / इन्हींके वार्तिकालङ्कारसे भावना विधि नियोगकी विस्तृत चरचा विद्यानन्दके ग्रन्थों द्वारा प्रभाचन्द्रके न्यायकुमुदचन्द्रमें अवतीर्ण हुई है। इतना विशेष है कि-विद्यानन्द और प्रभाचन्द्रने प्रज्ञाकरगुप्तकृत भावना विधि आदिके खंडनका भी स्थान स्थान पर विशेष समालोचन किया है। प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० 380) में प्रज्ञाकरके भाविकारणवाद और भूतकारणवादका उल्लेख तथा