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________________ प्रस्तावना पर अकलङ्कदेव ने वहां जाने और बौद्धों पर विजय प्राप्त करने का निश्चय कर लिया। अकलङ्क ने अपनी मयूरपिच्छिका को छुपाकर, जिससे वे जैनमती जाने जाते, बौद्धों को यह विश्वास दिलाने की योजना की कि वे शैव हैं और इस ढंग पर उनको वाद में जीतकर पीछे उन्हें अपनी मयूरपिच्छी दिखलादी। इस पर बौद्धलोग बहुत ही क्रुद्ध और उत्तेजित हुए। कांची के बौद्धों ने जैनियों का हमेशा के लिये अन्त कर डालने के अभिप्राय से अपने राजा हिमशीतल को इस बात के लिये उत्तेजित किया कि अकलङ्क को इस शर्त के साथ उनसे वाद करने के लिये बुलाया जाये कि जो कोई वाद में हार जाये उसके सम्प्रदाय के कुल मनुष्य कोल्हू में पिलवा दिये जाये / वाद हुआ / (वाद का वर्णन कथाकोश से बिल्कुल मिलता है केवल इतना अन्तर है कि यहां चक्रेश्वरी देवी के स्थान में कुष्मांडिनी देवी ने अकलङ्कदेव को तारा की सूचना दी थी) और जैनों की विजय हुई। राजा ने बौद्धों को कोल्हू में पिलवा देने का हुक्म दे दिया / परन्तु अकलङ्क की प्रार्थना पर वे समस्त बौद्ध सीलोन के एक नगर कैंडी को निर्वासित कर दिये गये।" हिमशीतल राजा की सभा में अकलङ्क के शास्त्रार्थ और तारा देवी की पराजय का उल्लेख श्रवणवेलगोला की मल्लिपेणप्रशस्ति में भी किया है / तथा उसमें राजा साहसतुंग की सभा में अकलङ्क के जाने और वहां आत्मश्लाघा करने का भी वर्णन है / प्रशस्ति के श्लोक इस प्रकार हैं " तारा येन विनिर्जिता घटकुटीगूढावतारा समं बौद्धर्या घृतपीठपीडितकुदृग्देवात्तसेवाञ्जलिः / प्रायश्चित्तमिवांधिवारिजरजः स्नानञ्च यस्याचर दोषाणां सुगतः स कस्य विषयो देवाकलङ्कः कृती // चूर्णिः। यस्येदमात्मनोऽनन्यसामान्यनिरवद्यविभवोपवर्णनमाकर्ण्यते राजन्साहसतुङ्ग सन्ति बहवः श्वेतातपत्राः नृपाः किन्तु त्वत्सदृशा रणे विजयिनस्त्यागोन्नता दुर्लभाः / तद्वत्सन्ति बुधा न सन्ति कवयो वादीश्वरा वाग्मिनो नानाशास्त्रविचारचातुरधियः काले कलौ मद्विधाः // 1 // राजन् सर्वारिदर्पप्रविदलनपटुस्त्वं यथात्र प्रसिद्धस्तद्वत्ल्यातोऽहमस्यां भुवि निखिलमदोत्पाटने पण्डितानाम् / नोचेदेषोऽहमेते तव सदसि सदा सन्ति सन्तो महान्तो वक्तं यस्यास्ति शक्तिः स वदतु विदिताशेषशास्रो यदि स्यात् // 2 // नाहकारवशीकृतेन मनसा न देषिणा केवलं नैरात्म्यं प्रतिपद्य नश्यति जने कारुण्यबुद्धया मया / राज्ञः श्रीहिमशीतलस्य सदसि प्राथो विदग्धात्मनो बौद्धौघान् सकलान् विजित्य सुगतः पादेन विस्फोटितः // 3 // " 1 यहां 'सुगतः के स्थान में ‘स घटः पाठ सम्यक् प्रतीत होता है। क्योंकि 'पादेन विस्फोटितः, के साथ उसकी सङ्गति ठीक बैठती है और हिमशीतल की सभा की घटना-पैर से घड़े को फोड़ने का भी भाव स्पष्ट हो जाता है। अन्यथा 'सुगत को पैर से फोड़ दिया। अर्थ असङ्गत प्रतीत होता है।
SR No.004326
Book TitleNyayakumudchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1938
Total Pages598
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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