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________________ न्यायकुमुदचन्द्र प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ प्रभाचन्द्र के तीन ग्रन्थों का ही पता अब तक चल सका है। यदि शाकटायनन्यास भी इन्हीं प्रभाचन्द्र की रचना है, जैसा कि शिलालेखों के उल्लेख से स्पष्ट है तो इनके चार ग्रन्थ कहे जाने चाहिये / उनका परिचय संक्षेप में निम्न प्रकार है प्रमेयकमलमार्तण्ड-माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख नामक सूत्रग्रन्थ का यह विस्तृत भाष्य है / इसकी अन्तिम प्रशस्ति में भी प्रभाचन्द्र ने अपने गुरु का नाम पद्मनन्दिसैद्धान्तिक लिखा है। तथा न्यायकुमुदचन्द्र के 'माणिक्यनन्दिपदमप्रतिमप्रबोधम्' आदि श्लोक से स्पष्ट है कि न्यायकुमुदचन्द्र के रचयिता की ही यह रचना है और उससे पहले इसका निर्माण हुआ है। परीक्षामुख शुद्धन्याय का ग्रन्थ है अतः प्रमेयकमल का प्रतिपाद्य विषय भी न्यायशास्त्र से सम्बन्ध रखता है। सन्मतिटीकाकार अभयदेवसूरि और स्याद्वादरत्नाकर के रचयिता वादिदेवसूरि ने इसग्रन्थ का विशेष अनुसरण किया है। स्याद्वादरत्नाकर में तो प्रमेयकमल और उसके रचयिता का नामनिर्देश भी किया है और स्त्री मुक्ति तथा केवलिभुक्ति के समर्थन में उसकी युक्तियों का खण्डन किया है। न्यायकुमुदचन्द्र प्रस्तावना के प्रारम्भ में इसकी आलोचना तथा विषयनिरूपण कर आये हैं। इसके बहुत से विषय प्रमेयकमलमार्तण्ड से मिलते हैं, किन्तु उनमें द्विरुक्ति नहीं आने पायी है। प्रमेयकमलमार्तण्डकी रचना के बाद जो नवीन नवीन युक्तियां प्रन्थकार के विचार में अवतरित हुई उनका निर्देश इसमें किया गया है, तथा जिन विषयों में द्विरुक्ति होने की संभावना थी उनका निरूपण न करके प्रमेयकमलमार्तण्ड में उन्हें देखलेने का अनुरोध कर दिया है। फिर भी इसमें अनेक ऐसे विषय हैं जो प्रमेयकमल में नहीं है / यद्यपि इसका मुख्य कारण मूलग्रन्थ लघीयस्त्रय भी है क्यों कि उसमें नय और निक्षेप को विस्तृत चर्चा है, जो परीक्षामुख में नहीं है, तथापि ग्रन्थकार ने भी अपने स्वतंत्र प्रबन्धों में बहुत सी मौलिक बातें बतलाई हैं / उदाहरण के लिये-वैभाषिकसम्मत प्रतीत्यसमुत्पाद का खण्डन, संस्कृत और प्राकृत भाषा के साधुत्व और असाधुत्व की चर्चा, प्रतिबिम्बविचार, तम और छाया को द्रव्यत्वसिद्धि आदि प्रकरणों का नाम उल्लेखनीय है / इसके सिवा न्यायकुमद की रचनाशैली भी प्रसन्न और मनोमुग्धकर है जैसा कि प्रारम्भ में लिख आये हैं। तत्त्वार्थवृत्ति-पं० जुगलकिशोरंजी मुख्तार ने इसके अस्तित्व की सूचना प्रकाशित की थी और उसकी प्रति का भी परिचय दिया था। किन्तु उन्होंने यह नहीं लिखा कि यह प्रति किस भण्डार में मौजूद है / पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि नामक टीका की यह लघुवृत्ति है। इसमें सर्वार्थसिद्धि के अप्रकटित पदों को व्यक्त किया गया है। प्रारम्भिक भाग निम्नप्रकार है “कश्चिद्भव्यः प्रसिध्येकनामा प्रत्यासन्ननिष्ठः निष्ठाशब्देन निर्वाणं चारित्रं चोच्यते प्रत्यासन्ना निष्ठा यस्यासौ प्रत्यासन्ननिष्ठः / " . इसकी प्रशस्ति उद्धृत कर आये हैं। उस से स्पष्ट है कि यह न्यायकुमुद के रचयिता की ही कृति है / यद्यपि प्रशस्ति आदि से ही न्यायकुमुदचन्द्र और इस वृत्ति का एककर्तृकत्व प्रतीत हो जाता है, किन्तु प्रभाचन्द्र ने तत्त्वार्थ पर कोई वृत्ति लिखी थी, यह बात स्याद्वादरत्नाकर 1 अनेकान्त, वर्ष 1, पृ० 197 /
SR No.004326
Book TitleNyayakumudchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1938
Total Pages598
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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