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________________ प्रस्तावना 119 जिसका खण्डन प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तड और न्यायकुमुद दोनों में ही किया है। न्यायकुमुदचन्द्र में तो न्यायमऊजरी का एक श्लोक भी उद्धृत किया है। जयन्तभट्ट ने न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका के रचयिता वाचस्पतिमिश्र का 'आचार्याः' करके उल्लेख किया है और मिश्रजी ने ई० 841 में अपना न्यायसूचीनिबन्ध रचा था। अतः जयन्तभट्ट का समय नवीं शताब्दी का उत्तरार्ध माना जाता है। ऐसी दशा में 838 ई० में रचे गये आदिपुराण में प्रभाचन्द्र के न्यायकुमुदचन्द्र का उल्लेख कैसे हो सकता है ? 1 तथा आदि पुराणकार जिनसेन के शिष्य गुणभद्र के आत्मानुशासन का,जो उनके प्रौढकाल की रचना जान पड़ती है, 35 वाँ पद्य न्यायकुमुदचन्द्र में उद्धृत किया गया है / गुणभद्र ने ई० 898 में, अर्थात आदिपुराण की रचना से 60 वर्ष के बाद, उत्तरपुराण समाप्त किया था। यदि उस समय उनकी आयु 80 वर्ष की मानी जाये तो भी आदिपुराण की रचना के समय वे 20 वर्ष के ठहरते हैं। ऐसी दशा में आत्मानुशासन की रचना करना और उसका उद्धरण न्यायकुमुदचन्द्र में होना तथा न्यायकुमुदचन्द्र का आदिपुराण के प्रारम्भ में स्मरण किया जाना किसी तरह संभव प्रतीत नहीं होता। __इन कारणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि आदिपुराण में चन्द्रोदय के कर्ता जिन प्रभाचन्द्र का स्मरण किया गया है वे न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र नहीं हैं, किन्तु उनके नामराशि कोई दूसरे ही ग्रन्थकार हैं। अतः आदिपुराण के उल्लेख के आधार पर प्रभाचन्द्र का जो समय निर्णीत किया गया था, वह भ्रान्त है। अतः उसके लिये हमें पुनः प्रयत्न करना होगा। प्रभाचन्द्र और उनके प्रमेयकमलमार्तण्ड का उल्लेख वादिदेवसूरि ( ई० 1088-1169) ने अपने स्याद्वादरत्नाकर में किया है। इससे पहले किसी ग्रन्थ में इनका उल्लेख हमारे देखने में नहीं आया। वादिराज ने अपने पाश्वनाथचरित में (ई० 1025) विद्यानन्द, अनन्तवीर्य आदि अनेक ग्रन्थकारों का स्मरण किया है, किन्तु प्रभाचन्द्र का स्मरण उन्होंने भी नहीं किया। अतः प्रभाचन्द्र के समय की अन्तिम अवधि ई० 1150 के लगभग समझनी चाहिये / शाकटायन ने अपने सूत्रों पर अमोघवृत्ति नाम से एक वृत्तिग्रन्थ रचा था। यह वृत्ति, जैसा कि उसके नाम से व्यक्त होता है, महाराज अमोघवर्प के राज्यकाल में रची गई थी। अमोघवर्ष प्रथम ने ई०८१५ से 878 तक राज किया है। इस अमोघवृत्ति को लेकर ही प्रभाचन्द्र ने शाकटायनन्यास की रचना की थी। तथा नवमी शताब्दी के विद्वान गुणभद्र के आत्मानुशासन से प्रभाचन्द्र ने एक पद्य उद्धृत किया है, और नवमी शताब्दी के विद्वान विद्यानन्द और अनन्तवीर्य का स्मरण किया है, तथा जयन्तभट्ट, जिनका समय नवमी शताब्दी का उत्तरार्ध है, के मत का न्यायकुमुदचन्द्र आदि में न केवल खण्डन ही किया है किन्तु उनकी मञ्जरी से एक 1 न्या० कु०, पृ. 393 / 2 'न्यायमरीकार भट्ट जयन्त के पुत्र अभिनन्द ने 'कादम्बरीकथासार। नामक काव्य की रचना की है। उसके प्रारम्भ में उन्होंने अपनी वंशावली दी है। जिसमें लिखा है कि भारद्वाजकल में शक्ति नाम का गौड़ ब्राह्मण था, जिसका पीत्र शक्तिस्वामी काश्मीर के कर्कोटवंश के मुक्तापोड ललितादित्य (ई. 733-769 ) का मंत्री था। इसका पुत्र कल्याणस्वामी याज्ञवल्क्य के समान बुद्धिमान था। इसी कल्याणस्वामी का पौत्र वृत्तिकार जयन्तभट्ट था। (सं० सा० का इतिहास) इस उल्लेख से शक्तिस्वामी की तीसरी पीढ़ी में जयन्त भट्ट आते हैं। प्रत्येक पीढ़ी का यदि 25 वर्ष समय माना जाये तो नवीं शताब्दी के मध्य में जयन्त का उदयकाल ठहरता है /
SR No.004326
Book TitleNyayakumudchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1938
Total Pages598
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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