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________________ 120 न्यायकुमुदचन्द्र पद्य भी उद्धृत किया है, अतः प्रभाचन्द्र के समय की आदि अवधि ई० 900 प्रमाणित होती है। इस प्रकार ई० 900 से 1150 तक के बीच में किसी समय प्रभाचन्द्र का उदय समझना चाहिए। अब हम इस लम्बी अवधि को सङ्कुचित करके प्रभाचन्द्र का ठीक समय निर्धारित करने का प्रयत्न करेंगे। इतर दर्शनों के साथ न्यायकुमुदचन्द्र की तुलना करते हुए बतलाया गया है कि वैशेषिक दर्शन के ग्रन्थों में व्योमवती टीका का प्रभाव प्रभाचन्द्र के ग्रन्थों पर है। इस टीका में प्रतिपादित मोक्षस्वरूपविचारणा के साथ प्रमेयकमलमार्तण्ड के द्वितीय अध्याय के अन्त में निरूपित मोक्षविचारणा का मिलान करने पर इसमें कोई सन्देह शेष नहीं रह जाता कि प्रभाचन्द्र ने इस विचारणा को शब्दशः व्योमवतीटीका से लिया है / तथा उसी प्रकरण में व्योमवतीटीका में जो अनेकान्तभावना के अभ्यास से मोक्ष मानने का खण्डन किया है उसका भी खण्डन प्रमेयकमल. मार्तण्ड में पाया जाता है। अतः यह निर्विवाद है कि प्रभाचन्द्र ने व्योमवती को देखा था। जयन्तभट्ट की न्यायमञ्जरी, व्योमशिव की व्योमवती और उदयन की किरणावलो की अन्तरंगपरीक्षा करने से ज्ञात होता है कि व्योमशिव ने 'अन्ये तु' करके जयन्त का उल्लेख किया है और किरणावलीकार ने व्योमशिव का 'आचार्य' शब्द से उल्लेख किया है। अतः जयन्त और उदयन के बीच में व्योमशिव को रखना होगा। जयन्त का समय ईसा को नवीं शताब्दी का उत्तरार्ध प्रमाणित होता है और उदयन ने ई० 984 में अपनी लक्षणावलो समाप्त की थी, अतः ई० 900 से 980 तक के समय में व्योमशिवं का कार्यकाल समझना चाहिये / यदि इस समय को घटाकर व्योमशिव के समय को अन्तिम अवधि ई० 950 मान ली जाये तो इसके बाद प्रभाचन्द्र का समय मानना होगा। पुष्पदन्त कवि कृत अपभ्रंश भाषा के महापुराण पर आचार्य प्रभाचन्द्रकृत एक टिप्पण उपलब्ध है / रत्नकरंड की प्रस्तावना में उसकी अन्तिम प्रशस्ति उद्धृत की गई है, जो निम्न प्रकार है "नित्यं तत्र तव प्रसन्नमनसा यत्पुण्यमत्यद्भुतं यातन्तेन समस्तवस्तुविषयं चेतश्चमत्कारकः / व्याख्यातं हि तदा पुराणममलं स्वसष्टमिष्टाक्षरैः भूयाच्चेतसि धीमतामतितरां चन्द्रार्कतारावधि // 1 // तत्त्वाधारमहापुराणगमनद्योती जनानन्दनः सर्वप्राणिमनःप्रभेदपटुताप्रस्पष्ट वाक्यैः करैः / भव्याब्जप्रतिबोधकः समुदितो भूभृत्प्रभाचन्द्रतः जीयाट्टिप्पणकः प्रचण्डतराणिः सर्वार्थमग्रद्युतिः // 2 // .. श्री जयसिंहदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिप्रणामोपार्जितामलपुण्यनिराकृताखिलमलकलङ्केन श्रीप्रभाचन्द्रपण्डितेन महापुराणटिप्पणके शतत्र्यधिकसहस्रत्रयपरिमाणं कृतमिति / " 1 डा. कीथ ने अपने इन्डियन लॉजिक में भी व्योमशिव का लगभग यही समय बतलाया है। 2 पृ० 61 /
SR No.004326
Book TitleNyayakumudchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1938
Total Pages598
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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