________________ 9. 54.6] महाभारत [9. 54. 35 तस्मिन्महापुण्यतमे त्रैलोक्यस्य सनातने / भीमसेनमभिप्रेक्ष्य गजो गजमिवाह्वयत् // 20 संग्रामे निधनं प्राप्य ध्रुवं स्वर्गो भविष्यति // 6 | अद्रिसारमयी भीमस्तथैवादाय वीर्यवान् / तथेत्युक्त्वा महाराज कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः / आह्वयामास नृपति सिंहः सिंहं यथा वने // 21 समन्तपञ्चकं वीरः प्रायादभिमुखः प्रभुः / / 7 तावुद्यतगदापाणी दुर्योधनवृकोदरौ। ततो दुर्योधनो राजा प्रगृह्य महतीं गदाम् / संयुगे स्म प्रकाशेते गिरी सशिखराविव // 22 पझ्याममर्षा युतिमानगच्छत्पाण्डवैः सह // 8 तावुभावभिसंक्रुद्धावुभौ भीमपराक्रमौ। . तथा यान्तं गदाहस्तं वर्मणा चापि दंशितम् / उभौ शिष्यौ गदायुद्धे रौहिणेयस्य धीमतः // 23 अन्तरिक्षगता देवाः साधु साध्वित्यपूजयन् / उभौ सदृशकर्माणौ यमवासवयोरिव / वातिकाश्च नरा येऽत्र दृष्ट्वा ते हर्षमागताः // 9 तथा सदृशकर्माणौ वरुणस्य महाबलौ // 24 स पाण्डवैः परिवृतः कुरुराजस्तवात्मजः / वासुदेवस्य रामस्य तथा वैश्रवणस्य च / मत्तस्येव गजेन्द्रस्य गतिमास्थाय सोऽव्रजत् / / 10 सदृशौ तौ महाराज मधुकैटभयोयुधि // 25 ततः शङ्खनिनादेन भेरीणां च महास्वनैः / उभौ सदृशकर्माणौ रणे सुन्दोपसुन्दयोः / सिंहनादैश्च शूराणां दिशः सर्वाः प्रपूरिताः // 11 तथैव कालस्य समौ मृत्योश्चैव परंतपौ // 26 प्रतीच्यभिमुखं देशं यथोद्दिष्टं सुतेन ते / अन्योन्यमभिधावन्तौ मत्ताविव महाद्विपौ। गत्वा च तैः परिक्षिप्तं समन्तात्सर्वतोदिशम् // 12 वाशितासंगमे दृप्तौ शरदीव मदोत्कटौ // 27 दक्षिणेन सरस्वत्याः स्वयनं तीर्थमुत्तमम् / मत्ताविव जिगीषन्तौ मातङ्गौ भरतर्षभी। तस्मिन्देशे त्वनिरिणे तत्र युद्धमरोचयन् // 13 उभी क्रोधविषं दीप्तं वमन्तावुरगाविव // 28 ततो भीमो महाकोटिं गदां गृह्याथ वर्मभृत् / अन्योन्यमभिसंरब्धौ प्रेक्षमाणावरिंदमौ। बिभ्रद्रूपं महाराज सदृशं हि गरुत्मतः // 14 उभौ भरतशार्दूलो विक्रमेण समन्विता // 29 अवबद्धशिरस्त्राणः संख्ये काञ्चनवर्मभृत् / सिंहाविव दुराधर्षों गदायुद्धे परंतपौ / रराज राजन्पुत्रस्ते काञ्चनः शैलराडिव // 15 नखदंष्ट्रायुधौ वीरौ व्याघ्राविव दुरुत्सहौ // 30 वर्मभ्यां संवृतौ वीरौ भीमदुर्योधनावुभौ / प्रजासंहरणे क्षुब्धौ समुद्राविव दुस्तरौ / संयुगे च प्रकाशेते संरब्धाविव कुञ्जरौ // 16 लोहिताङ्गाविव क्रुद्धौ प्रतपन्तौ महारथौ // 31 रणमण्डलमध्यस्थौ भ्रातरो तो नरर्षभौ / रश्मिमन्तौ महात्मानौ दीप्तिमन्तौ महाबलौ / अशोभेतां महाराज चन्द्रसूर्या विवोदितौ // 17 ददृशाते कुरुश्रेष्ठी कालसूर्या विवोदितौ // 32 तावन्योन्यं निरीक्षेतां क्रुद्धाविव महाद्विपौ।। व्याघ्राविव सुसंरब्धौ गर्जन्ताविव तोयदौ / दहन्तौ लोचनै राजन्परस्परवधैषिणौ // 18 / / जहषाते महाबाहू सिंहौ केसरिणाविव / / 33 संप्रहृष्टमना राजन्गदामादाय कौरवः / गजाविव सुसंरब्धौ ज्वलिताविव पावको / सृक्किणी संलिहनराजन्क्रोधरक्तेक्षणः श्वसन् // 19 / ददृशुस्तौ महात्मानौ सशृङ्गाविव पर्वतौ // 34 ततो दुर्योधनो राजा गदामादाय वीर्यवान्। / रोषात्प्रस्फुरमाणोष्ठी निरीक्षन्तो परस्परम् / - 1910 -