________________ 6. 61. 41] महाभारते [6. 61. 70 जगाद जगतः स्रष्टा परं परमधर्मवित् // 41 तेजोऽग्निः पवनः श्वास आपस्ते स्वेदसंभवाः // 55 विश्वावसुर्विश्वमूर्तिर्विश्वेशो अश्विनी श्रवणौ नित्यं देवी जिह्वा सरस्वती। विष्वक्सेनो विश्वकर्मा वशी च / वेदाः संस्कारनिष्ठा हि त्वयीदं जगदाश्रितम् / / 56 विश्वेश्वरो वासुदेवोऽसि तस्मा न संख्यां न परीमाणं न तेजो न पराक्रमम् / द्योगात्मानं दैवतं त्वामुपैमि / / 42 न बलं योगयोगीश जानीमस्ते न संभवम् // 57 जय विश्व महादेव जय लोकहिते रत। त्वद्भक्तिनिरता देव नियमैस्त्वा समाहिताः। जय योगीश्वर विभो जय योगपरावर // 43 अर्चयामः सदा विष्णो परमेशं महेश्वरम् // 58 पद्मगर्भ विशालाक्ष जय लोकेश्वरेश्वर / ऋषयो देवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः / भूतभव्यभवन्नाथ जय सौम्यात्मजात्मज // 44 पिशाचा मानुषाश्चैव मृगपक्षिसरीसृपाः // 59 असंख्येयगुणाजेय जय सर्वपरायण / एवमादि मया सृष्टं पृथिव्यां त्वत्प्रसादजम् / नारायण सुदुष्पार जय शार्ङ्गधनुर्धर // 45 पद्मनाभ विशालाक्ष कृष्ण दुःस्वप्ननाशन // 60 सर्वगुह्यगुणोपेत विश्वमूर्ते निरामय / त्वं गतिः सर्वभूतानां त्वं नेता त्वं जगन्मुखम् / विश्वेश्वर महाबाहो जय लोकार्थतत्पर // 46 त्वत्प्रसादेन देवेश सुखिनो विबुधाः सदा // 61 महोरग वराहाद्य हरिकेश विभो जय / पृथिवी निर्भया देव त्वत्प्रसादात्सदाभवत् / हरिवास विशामीश विश्वावासामिताव्यय // 47 तस्माद्भव विशालाक्ष यदुवंशविवर्धनः / / 62 . व्यक्ताव्यक्तामितस्थान नियतेन्द्रिय सेन्द्रिय / धर्मसंस्थापनार्थाय दैतेयानां वधाय च / असंख्येयात्मभावज्ञ जय गम्भीर कामद // 48 जगतो धारणार्थाय विज्ञाप्यं कुरु मे प्रभो // 63 अनन्त विदितप्रज्ञ नित्यं भूतविभावन / यदेतत्परमं गुह्यं त्वत्प्रसादमयं विभो। कृतकार्य कृतप्रज्ञ धर्मज्ञ विजयाजय // 49 वासुदेव तदेतत्ते मयोद्गीतं यथातथम् // 64 गुह्यात्मन्सर्वभूतात्मन्स्फुटसंभूतसंभव / सृष्ट्वा संकर्षणं देवं स्वयमात्मानमात्मना / भूतार्थतत्त्व लोकेश जय भूतविभावन // 50 कृष्ण त्वमात्मनास्राक्षीः प्रद्युम्नं चात्मसंभवम् / / 65 आत्मयोने महाभाग कल्पसंक्षेपतत्पर / प्रद्युम्नाच्चानिरुद्धं त्वं यं विदुर्विष्णुमव्ययम् / उद्भावन मनोद्भाव जय ब्रह्मजनप्रिय // 51 अनिरुद्धोऽसृजन्मां वै ब्रह्माणं लोकधारिणम् // 66 निसर्गसर्गाभिरत कामेश परमेश्वर / वासुदेवमयः सोऽहं त्वयैवास्मि विनिर्मितः / अमृतोद्भव सद्भाव युगाग्ने विजयप्रद // 52 विभज्य भागशोऽऽत्मानं व्रज मानुषतां विभो // 67 प्रजापतिपते देव पद्मनाभ महाबल / तत्रासुरवधं कृत्वा सर्वलोकसुखाय वै / / आत्मभूत महाभूत कर्मात्मञ्जय कर्मद // 53 धर्म स्थाप्य यशः प्राप्य योगं प्राप्स्यसि तत्त्वतः॥ पादौ तव धरा देवी दिशो बाहुर्दिवं शिरः। . - त्वां हि ब्रह्मर्षयो लोके देवाश्वामितविक्रम / मूर्तिस्तेऽहं सुराः कायश्चन्द्रादित्यौ च चक्षुषी॥५४ - तैस्तैश्च नामभिर्भक्ता गायन्ति परमात्मकम् // 69 बलं तपश्च सत्यं च धर्मः कामात्मजः प्रभो। / स्थिताश्च सर्वे त्वयि भूतसंघयः - 1232 -