________________ 3. 189. 29 ] भारण्यकपर्व [3. 190. 30 %3 ण्डेयः // 2 // करिष्यामि हि तत्सर्वमुक्तं यत्ते मयि प्रभो // 29 / त्वया लब्धुम् / नान्यथेति // 15 // तां राजा समवैशंपायन उवाच / यमपृच्छत् // 16 // ततः कन्येदमुवाच / उदकं श्रुत्वा तु वचनं तस्य पाण्डवस्य महात्मनः / . मे न दर्शयितव्यमिति // 17 // स राजा बाढप्रहृष्टाः पाण्डवा राजन्सहिताः शार्ङ्गधन्वना / / 30 मित्युक्त्वा तां समागम्य तया सहास्ते // 18 // तथा कथां शुभां श्रुत्वा मार्कण्डेयस्य धीमतः / ___ तत्रैवासीने राजनि सेनान्वगच्छत् / पदेनानुपई विस्मिताः समपद्यन्त पुराणस्य निवेदनात् // 31 दृष्ट्वा राजानं परिवार्यातिष्ठत् // 19 // पर्याश्वस्तश्च इति श्रीमहाभारते आरण्यकपर्वणि राजा तयैव सह शिबिकया प्रायादविघाटितया / एकोननवत्यधिकशततमोऽध्यायः // 189 // स्वनगरमनुप्राप्य रहसि तया सह रमन्नास्ते। नान्म१९० त्किंचनापश्यत् // 20 // वैशंपायन उवाच / __अथ प्रधानामात्यस्तस्याभ्याशचराः खियोभूय एव ब्राह्मणमहाभाग्यं वक्तुमर्हसीत्यब्रवी- ऽपृच्छत् / किमत्र प्रयोजनं वर्तत इति // 21 // पाण्डवेयो मार्कण्डेयम् / / 1 // अथाचष्ट मार्क- अथाब्रुवस्ताः स्त्रियः। अपूर्वमिव पश्याम उदकं नात्र नीयत इति // 22 // अथामात्योऽनुदकं वनं कारअयोध्यायामिक्ष्वाकुकुलोत्पन्नः पार्थिवः परि- यित्वोदारवृक्षं बहुमूलपुष्पफलं रहस्युपगम्य राजाक्षिन्नाम मृगयामगमत् // 3 // तमेकाश्वेन मृगमन- नमब्रवीत् / वनमिदमुदारमनुदकम् / साध्वत्र रम्यसरन्तं मृगो दूरमपाहरत् // 4 // अथाध्वनि जात- तामिति // 23 // प्रमः क्षुत्तृष्णाभिभूतश्च कस्मिंश्चिदुद्देशे नीलं बन- स तस्य वचनात्तयैव सह देव्या तद्वनं प्राविपण्डमपश्यत् / तच्च विवेश // 5 // ततस्तस्य वन- शत् / स कदाचित्तस्मिन्वने रम्ये तयैव सह व्यवपण्डस्य मध्येऽतीव रमणीयं सरो दृष्ट्वा साश्व एव हरत् / अथ क्षुत्तृष्णार्दितः श्रान्तोऽतिमात्रमतिमुक्ताव्यगाहत्त // 6 // अथाश्वस्तः स बिसमृणालमश्व- गारमपश्यत् / / 24 // तत्प्रविश्य राजा सह प्रियया स्याग्रे निक्षिप्य पुष्करिणीतीरे समाविशत् // 7 // सुधातलसुकृतां विमलसलिलपूर्णां वापीमपश्यत बतः शयानो मधुरं गीतशब्दमशृणोत् / / 8 // स // 25 // दृष्ट्वैव च तां तस्या एव तीरे सहैव तया श्रुत्वाचिन्तयत्। नेह मनुष्यगतिं पश्यामि। कस्य देव्या व्यतिष्ठत् // 26 // अथ तां देवीं स राजाखल्वयं गीतशब्द इति // 9 // ब्रवीत् / साध्ववतर वापीसलिलमिति // 27 ॥सा अथापश्यत्कन्यां परमरूपदर्शनीयां पुष्पाण्यव- तद्वचः श्रुत्वावतीर्य वापी न्यमज्जत् / न पुनरुदमचिन्वतीं गायन्ती च // 10 // अथ सा राज्ञः ज्जत् // 28 // तां मृगयमाणो राजा नापश्यत समीपे पर्यक्रामत् / / 11 // तामब्रवीद्राजा / कस्या- ॥२९॥वापीमपि निःस्राव्य मण्डूकं श्वभ्रमुखे दृक्षा सि सुभगे त्वमिति // 12 // सा प्रत्युवाच / कन्या- क्रुद्ध आज्ञापयामास / सर्वमण्डूकवधः क्रियतास्मीति // 13 // तां राजोवाच / अर्थी त्वयाह- मिति / यो मयार्थी स मृतकैर्मण्डूकैरुपायनर्मामुपमिति // 14 // अथोवाच कन्या। समयेनाहं शक्या / तिष्ठदिति // 30 // -653 -