________________ हैं. 6. 28 ] महाभारते [3. 66. कुंशली ते पिता राज्ञि जनित्री भ्रातरश्च ते। दमयन्त्या गतः साधं न प्रज्ञायत कर्हिचित् // 3 आयुष्मन्तौ कुशलिनौ तत्रस्थौ दारकौ च ते / / ते वयं दमयन्त्यर्थे चरामः पृथिवीमिमाम् / त्वत्कृते बन्धुवर्गाश्च गतसत्त्वा इवासते // 28 सेयमासादिता बाला तव पुत्रनिवेशने // 4 . अमिज्ञाय सुदेवं तु दमयन्ती युधिष्ठिर। अस्या रूपेण सदृशी मानुषी नेह विद्यते। पर्यपृच्छत्ततः सन्क्रिमेण सुहृदः स्वकान् // 29 अस्याश्चैव ध्रुवोर्मध्ये सहजः पिप्लुरुत्तमः / .. लोद च भृशं राजन्वैदर्भी शोककर्शिता। श्यामायाः पद्मसंकाशो लक्षितोऽन्तर्हितो मया // 6 दृष्ट्वा सुदेवं सहसा भ्रातुरिष्टं द्विजोत्तमम् // 30 मलेन संवृतो ह्यस्यास्तन्वभ्रेणेव चन्द्रमाः। :: ततो रुदन्तीं तां दृष्ट्वा सुनन्दा शोककर्शिताम् / चिह्नभूतो विभूत्यर्थमयं धात्रा विनिर्मितः // 6. सुदेवेन सहैकान्ते कथयन्ती च भारत // 31 प्रतिपत्कलुषेवेन्दोर्लेखा नाति विराजते। जनित्र्यै प्रेषयामास सैरन्ध्री रुदते भृशम् / / न चास्या नश्यते रूपं वपुर्मलसमाचितम् / ... ब्राह्मणेन समागम्य तां वेद यदि मन्यसे // 32 असंस्कृतमपि व्यक्तं भाति काञ्चनसंनिभम् / / अथ चेदिपतेर्माता राज्ञश्वान्तःपुरात्तदा। / अनेन वपुषा बाला पिप्लुनानेन चैव ह। जगाम यत्र सा बाला ब्राह्मणेन सहाभवत् // 33 लक्षितेयं मया देवी पिहितोऽमिरिवोष्मणा // 8 ततः सुदेवमानाय्य राजमाता विशां पते / बृहदश्व उवाच। पप्रच्छ भार्या कस्येयं सुता वा कस्य भामिनी॥३४ तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य सुदेवस्य विशां पते। . कथं च नष्टा ज्ञातिभ्यो भर्तुर्वा वामलोचना। सुनन्दा शोधयामास पिप्लुप्रच्छादनं मलम् // 9 . त्वया च विदिता विप्र कथमेवंगता सती // 35. स मलेनापकृष्टेन पिप्लुस्तस्या व्यरोचत। एतदिच्छाम्यहं त्वत्तो ज्ञातुं सर्वमशेषतः। दमयन्त्यास्तदा व्यभ्रे नमसीव निशाकरः // 10 तत्वेन हि ममाचक्ष्व पृच्छन्त्या देवरूपिणीम् // 36 पिप्लु दृष्ट्वा सुनन्दा च राजमाता च भारत / एवमुक्तस्तया राजन्सुदेवो द्विजसत्तमः / रुदन्त्यौ तां परिष्वज्य मुहूर्तमिव तस्थतुः / सुखोपविष्ट आचष्ट दमयन्त्या यथातथम् // 37 उत्सृज्य बाष्पं शनकै राजमातेदमब्रवीत् // 11 . इति श्रीमहाभारते आरण्यकपर्वणि भगिन्या दुहिता मेऽसि पिप्लुनानेन सूचिता। , पञ्चषष्टितमोऽध्यायः // 65 // अहं च तव माता च राजन्यस्य महात्मनः / / सुते दशार्णाधिपतेः सुदाम्नश्चारुदर्शने // 12 सुदेव उवाच / भीमस्य राज्ञः सा दत्ता वीरबाहोरहं पुनः / विदर्भराजो धर्मात्मा भीमो भीमपराक्रमः। त्वं तु जाता मया दृष्टा दशार्णेषु पितुर्गृहे // 13 सुतेयं तस्य कल्याणी दमयन्तीति विश्रुता // 1 यथैव ते पितुर्गेहं तथेदमपि भामिनि / राजा तु नैषधो नाम वीरसेनसुतो नलः / यथैव हि ममैश्वर्यं दमयन्ति तथा तव // 14 / भार्येयं तस्य कल्याणी पुण्यश्लोकस्य धीमतः // 2 | तां प्रहृष्टेन मनसा दमयन्ती विशां पते। स वै द्यूते जितो भ्रात्रा हृतराज्यो महीपतिः। अभिवाद्य मातुर्भगिनीमिदं वचनमब्रवीत् // 15 -476 -