________________ धातुप्रदीपः / मुट आक्षेपप्रमईनयोः / 83 / मुट ति | मुटिता। मोटकः / गणान्तर मोटति / मोटयति। त्रुट च्छेदने / 84 / बुटति त्रुट्यति / तुत्रोट / त्रुटिता / तुट कलहकर्मणि / 85 / तुटति / तुटिता। तुटः। घुट छुट च्छेदने / 86 / 87 / चुटति / चुटिता। छुटति / कुटिता / जुड़ बन्धने / 88 / जुड़ति / जुड़िता। जोड़ितेति गत्यर्थस्य / कड़ मदे। / कति / कडगरः (16) / काड़ः / कड़ेः कुटादिकार्यभावादन्यत्रापि पाठ न दोषः। एवं कुटादिपाठबलादकड़ोदित्यत्रापि प्रतो हलादेलघोरि (7 / 2 / 7) त्यनिगलक्षणाया हरिप्यभाव इति केचित् / अपर तु टवर्गान्तानुरोधे नेह निर्दिश्यत इति ब्रुवते / भ्वादिष्वस्य पाठस्तु वरभेदार्थः (17) / लुठ संश्लेषण | 100 / लुठति / लुठिता। अलुठीत् / लुड़ इत्येके / 101 / लुइति / लुड़िता। हुड सहने / 102 / हुड़ति / हुड़िता (18) / कुड वाल्ये / 103 / कुडति / कुडिता / कोयम् / कोडः / पुड़ उत्सर्गे / 104 / पुड़ति / पुड़िता / घुट प्रतिघाते / 105 / घुटति / घुटिता | घोटकः / तुड़ तोड़ने / 106 / तुड़ति / तुड़िता। थुड़ छुड़ संवरण / 107 / 108 / थुड़ति / थुड़िता / स्थुड़ति / स्थुड़िता / खुड़ छुड़ इत्येके / 108 / 110 / खुड़ति / खुड़िता। "खीड़: खञ्ज त्रिषु स्मृतः / " छुड़ति / छुड़िता / हुड़ संघाते / 111 / हुड़ति / हुड़िता। (16) मतान्तरे कड़करशब्दोऽयम्। तथाच हरदत्तः-“कड़ मद। कड़तौति कड़ः। कई करोती. त्यत एव निपातनात् खच्। कड़करी माषमुद्गादि काष्ठ मुच्यत" इति। कड़गरी संतोव इत्यमरः। कडङ्करदक्षिणाच्छ चेति (5 / 1 / 6) छप्रत्यये कड़ङ्गरम हंति कड़गरीयो वषः। नौवारपाकादिकड़गरौयैरिति रघुकाव्ये। (17) उञ्छतिवत्। उछि उञ्छे इत्यत्र टीका द्रष्टव्या। (18) माधवभट्टीजिभ्यामय न दत्तः /