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________________ प्रस्तावना प्रस्तुत मल्लवादी बौद्ध हों ऐसा निश्चित रूपसे कहा नहीं जा सकता, क्योंकि बौद्ध परंपरा में किसी मल्लवादी नामक आचार्य का पता नहीं चलता। प्रारंभ में त्रुटित जो मंगलाचरण है-उसमें 'प्रणिपत्य जिना[न]' ऐसा भाग सुरक्षित है। उससे पता चलता है कि लेखक प्रारंभ में जिनों को नमस्कार करता है। यद्यपि बौद्धों के द्वारा भी 'जिन' शब्द का प्रयोग होता है फिर भी बौद्ध परंपरा में किसी मल्लवादी का उल्लेख नहीं मिलता। जबकि जैन परंपरा में एकाधिक मल्लवादी हए हैं। अतएव जिनों को अर्थात् तीथंकरों को नमस्कार किया है-ऐसी संभावना से ये जैन हों ऐसी संभावना हो सकती है। जैनों में एक मल्लवादी नयचक्र के कर्ता प्रसिद्ध है। किन्तु उनका समय वीरसंवत् 884 परंपरा संमत है। इसे असंगत मानकर डॉ० विद्याभूषण ने सुझाव रक्खा है कि वह संवत् वीर संवत् न होकर विक्रम या शकसंवत् है। ऐसी स्थिति में मल्लवादी का समय ई०८२७ या 962 स्थिर होता है ऐसा उनका मत' है। डॉ० अल्टेकर ने एपिग्राफिया इन्डिका में एक गुजरात के राष्ट्रकूट राजा कर्क सुवर्णवर्ष का ताम्रपट्ट संपादित किया है। उसमें मूलसंघ के सेन आम्नाय के मल्लवादी, उनके शिष्य सुमति और उनके शिष्य अपराजित का उल्लेख है। वह लेख शकसंवत् 743 का है। डॉ० अल्टेकर का अनुमान है कि न्यायबिन्दु के टिप्पणकार इस लेख में उल्लिखित मल्लवादी हो सकते हैं। और उनका यह अनुमान धर्मोत्तर के समय के साथ भी संगत होता है। शक संवत् 743 अर्थात् ई० 821 में अपराजित हुए। मल्लवादी अपराजित के गुरु सुमति के भी गुरू थे। तत्त्वसंग्रह में सुमति नामक दिगम्बर जैनाचार्य का खण्डन है ऐसा उल्लेख आचार्य कमलशील ने तत्वसंग्रह की टीका में किया है। यदि उन्हीं सुमति को पूर्वोक्त ताम्रपट्ट में उल्लिखित सुमति माना जाय तो समय की संगति करना आवश्यक है। तत्त्वसंग्रहकार शान्तरक्षित का समय ई०७०५-७६२ डॉ० भट्टाचार्य ने स्थिर किया है और उक्त ताम्रपट्ट से सुमति के शिष्य अपराजित की ई० 821 में सत्ता सिद्ध होती है। डॉ० भट्टाचार्य ने सुमति का समय ई० 720 आसपास होने का अनुमान किया है। किन्तु ऐसी स्थितिमें गुरु और शिष्य के बीच 100 वर्ष का अन्तर हो जाता है। अतएव सुमतिका समय अर्थात् सुमति की ग्रन्थरचना का समय ई० 740 के आसपास यदि माना जाय तो पूर्वोक्त असंगति होगी नहीं। शान्तरक्षित ने तिब्बत जाने से पूर्व ही तत्त्वसंग्रह की रचना की है। अतएव वह ई० 745 के पूर्व रचा गया होगा, क्योंकि शान्तरक्षित ने तिब्बत जाकर ई० 749 में नये विहार की स्थापना की है। अतएव हम मान सकते हैं कि तत्त्वसंग्रह ई० 745 के आसपास रचा गया होगा। सुमति को भी यदि शान्तरक्षित के समवयस्क मान लिया जाय तो उनकी भी उत्तराविधि ई० 762 के आसपास हो सकती है। ऐसी स्थिति में सुमति के शिष्य History of Indian Logic, p. 195. ? Epigraphica Indica Vol. XXI. p. 133. '3 तत्त्वसंग्रहटीका पृ० 379, 382, 383, 489, 496 / 1 वही, प्रस्तावना पृ० 92 /
SR No.004317
Book TitleDharmottar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherKashiprasad Jayswal Anushilan Samstha
Publication Year1956
Total Pages380
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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